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75 साल बाद सामने आया नेहरू का ऐतिहासिक भाषण: कांग्रेस को मिला नया राजनीतिक संदेश

75 साल बाद सामने आया नेहरू का ऐतिहासिक भाषण: कांग्रेस को मिला नया राजनीतिक संदेश

पृष्ठभूमि:

कांग्रेस नेताओं ने हाल ही में जवाहरलाल नेहरू का एक 75 साल पुराना भाषण साझा किया है, जो आमतौर पर प्रसिद्ध “Tryst with Destiny” (नियति से साक्षात्कार) के साए में दबा रह गया था। यह भाषण 14 अगस्त 1947 की रात संविधान सभा में दिया गया था — भारत की आजादी के कुछ ही मिनट पहले।

कांग्रेस को क्या "खास" मिला इस भाषण में?

नेहरू के इस पुराने भाषण में कुछ ऐसे अंश हैं जिन्हें कांग्रेस आज के सियासी माहौल में प्रासंगिक मान रही है। खासतौर पर ये बातें:

🔹 "इस आज़ादी में सबकी बराबरी की हिस्सेदारी है"

नेहरू ने ज़ोर दिया कि आज़ादी किसी एक पार्टी, वर्ग या समूह की नहीं है — यह पूरे देश की साझी विरासत है।

✅ आज की राजनीति में, जहां एक पार्टी (BJP) खुद को एकमात्र 'देशभक्त' या 'स्वतंत्रता संग्राम की असली वारिस' बताती है, कांग्रेस इस भाषण को यह दिखाने के लिए प्रयोग कर रही है कि आज़ादी में कांग्रेस के साथ-साथ अन्य आंदोलनों और आम लोगों की भी बराबर भूमिका थी।

🔹 "अगर कोई ज्यादती करेगा, तो हम उसे रोकेंगे"

नेहरू ने यह भी कहा कि अगर कोई आज़ादी के नाम पर मनमानी करेगा या दूसरों पर ज़्यादती करेगा, तो लोकतांत्रिक व्यवस्था उसे रोकेगी।

✅ कांग्रेस इसे आज की सत्ता के 'अत्याचार' और 'संविधान के उल्लंघन' के खिलाफ एक चेतावनी की तरह पेश कर रही है — यह दर्शाने के लिए कि नेहरू पहले ही इस तरह के खतरों को लेकर सतर्क थे।

कांग्रेस को क्यों "अब" यह भाषण मिला?

राजनीतिक संदर्भ: 2024 के लोकसभा चुनावों में हार के बाद कांग्रेस नए नैरेटिव्स और संविधान की रक्षा को अपनी रणनीति बना रही है।

BJP का नैरेटिव तोड़ना: BJP अक्सर कांग्रेस की भूमिका को कमतर आंकती है। यह भाषण कांग्रेस को यह दिखाने का मौका देता है कि पार्टी भारत की आज़ादी की मुख्य अगुवा थी और उसकी सोच समावेशी और लोकतांत्रिक थी।

15 अगस्त पर नेहरू के पहले भाषण का नाम 'Tryst with Destiny' नहीं था! जयराम  रमेश ने शेयर की हस्तलिखित कॉपी - Nehru first indepence day speech drafted  as date with destiny
 जवाहरलाल नेहरू का एक 75 साल पुराना भाषण

नतीजा:

75 साल बाद भी नेहरू का यह भाषण इसलिए चर्चा में है क्योंकि यह आज के राजनीतिक विमर्श में सीधा हस्तक्षेप करता है। “सबकी हिस्सेदारी” और “ज्यादती को रोकने” जैसे विचार, आज के संवैधानिक संकट, ध्रुवीकरण और लोकतंत्र के हनन जैसे मुद्दों के संदर्भ में काफी प्रासंगिक बन गए हैं।


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