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“लालू चाहता है अपना बेटा सीएम, सोनिया चाहती है अपना बेटा पीएम”: अमित शाह का तीखा हमला, बिहार को मेट्रो-एयरपोर्ट-AIIMS का वादा

“लालू चाहता है अपना बेटा सीएम, सोनिया चाहती है अपना बेटा पीएम”: अमित शाह का तीखा हमला, बिहार को मेट्रो-एयरपोर्ट-AIIMS का वादा

दरभंगा की धड़कन में, कल-आज की राजनीति के बीच जब बड़े वादों की लकीर खिंची है, तब अमित शाह ने उस लकीर पर खासी तेज़ी से कदम रखा। बुधवार को उन्होंने यहाँ जनसभा आयोजित की जिसमें उन्होंने लालू प्रसाद यादव और सोनिया गांधी को कटाक्षों की नोंक पर नोक पर ला खड़ा किया। उनके शब्द सीधे, तीखे — और संदेशात्‍मक।

शाह ने कहा कि लालू जी चाहते हैं कि उनका बेटा बिहार का मुख्यमंत्री बने। वहीं, सोनिया जी चाहती हैं कि उनका बेटा प्रधानमंत्री बने। लेकिन — और यह उनकी बात है — दोनों शीर्ष पद “खाली नहीं हैं”। 

यह हमला सिर्फ वंशवाद पर नहीं था; इसके साथ उन्होंने अपने गठबंधन राष्ट्रीय लोकतांत्रिक गठबंधन (एनडीए) के विकास एजेंडे को भी जोर-शोर से पेश किया। दरभंगा में उन्होंने बड़ी घोषणाएं की--मेट्रो, AIIMS, एयरपोर्ट--वादा किया कि इन परियोजनाओं से बिहार की धड़कन बदल जाएगी। 

वंशवाद पर कटाक्ष

अमित शाह ने कहा कि राजनीति में “परिवार की बागडोर” ने बहुत-कुछ तय कर लिया है। उन्होंने यह प्रश्न भी खड़ा किया कि क्या इतनी बड़ी जिम्मेदारियाँ सिर्फ वंश के अधिकार के आधार पर सौंपी जा सकती हैं। उनके अनुसार, राजनीति में उत्तरदायित्व का भाव होना चाहिए, सिर्फ पैतृकाधिकार का नहीं।

उन्होंने आरोप लगाया कि पुराने समय में भ्रष्टाचार, अव्यवस्था और भय-राज का माहौल था। “जंगल राज” जैसा चरित्र पुनर्जीवित हो सकता है, यदि विकास की धारा नहीं बनी रही। 

विकास और वादे

विकास-वादा आज की राजनीति का सबसे बड़ा हथियार है और अमित शाह ने इसे खुलकर अपनाया। उन्होंने कहा-

दरभंगा में मेट्रो रोडलाइफ़ लाने की योजना है। 

एयरपोर्ट पहले से बन चुका है, AIIMS निर्माणाधीन है। 

मखाना बोर्ड, मुफ्त राशन, 125 यूनिट-फ्री बिजली जैसे योजनाओं का हवाला दिया गया। 

मिथिला संस्कृति के संरक्षण के लिए 500 करोड़ रुपए का केंद्र खोलने का वादा भी उन्होंने किया। 

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राजनीति का माहौल

बिहार विधानसभा चुनाव 2025 के दो चरण—6 और 11 नवंबर—के पहले ये घोषणाएँ और कटाक्ष धड़कन बढ़ा रहे हैं। 
शाह का संदेश सीधा था: विकास-वादा, सुशासन, और वंशवाद के खिलाफ मोर्चा। विपक्ष के लिए यह चुनौती थी; स्वयं उनके लिए भी यह जिम्मेदारी।

निष्कर्ष

तो यहाँ हम हैं उस मोड़ पर जहाँ बयान, वादा और कटाक्ष एक साथ सामने आए हैं। अमित शाह ने इस सभा में जो कहा, वो सिर्फ एक भाषण नहीं था—यह एक संकेत था कि बिहार अब सिर्फ परिवारों तक सीमित नहीं रहेगा, बल्कि विकास-लीडर्स के हाथ में होगा।
अगर आप पूछें कि असल में यह क्या मतलब रखता है—तो मतलब है: राजनीति को पारिवारिक विरासत से आगे ले जाना, वादा-बाजी से कदम-बदल करना, और बिहार की सुध लेने का भरोसा जनता के हाथ में देना।


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