272 वरिष्ठ नागरिकों ने चुनाव आयोग को दिया खुला समर्थन, विपक्ष के ‘वोट चोरी’ आरोपों को बताया खतरनाक
- byAman Prajapat
- 19 November, 2025
देश में राजनीतिक हलचल उस समय और तेज़ हो गई, जब 272 प्रतिष्ठित वरिष्ठ नागरिकों ने एक खुला पत्र जारी करके चुनाव आयोग (Election Commission) के प्रति गहरा विश्वास और समर्थन व्यक्त किया। यह बयान एक तरह की क्रांति-सा एहसास था — क्योंकि ये 272 लोग सिर्फ सामान्य नागरिक नहीं हैं; इनमें पूर्व न्यायाधीश, सेवानिवृत्त वरिष्ठ अधिकारी, राजनयिक और पूर्व सैनिक शामिल हैं, जो अपने अनुभव और प्रतिष्ठा की वजह से समाज में सम्मान रखते हैं।
वे इस खुली चिट्ठी के ज़रिए वो आवाज़ उठा रहे हैं, जिसे लोकतंत्र के कुछ हिस्सों में आज खोता देख रहे हैं — यह विश्वास कि चुनाव आयोग सिर्फ एक संवैधानिक संस्था है, न कि किसी राजनीतिक दल की शाखा। उन्होंने सीधे तौर पर राहुल गांधी और अन्य विपक्षी नेताओं की उन बातों की निंदा की है, जिनमें आयोग पर अपने-अपने राजनीतिक गेम को आगे बढ़ाने के लिए जनता का भरोसा तोड़ने की कोशिश का आरोप लगाया जा रहा है।
उनका कहना है कि इस तरह के आरोप लोकतांत्रिक संस्थाओं की नींव को नुकसान पहुंचाते हैं। पत्र में यह महसूस होता है कि वे सिर्फ चुनाव आयोग का बचाव नहीं कर रहे — बल्कि संविधान और लोकतांत्रिक मूल्यों की रक्षा की बात कर रहे हैं। वे चेतावनी दे रहे हैं कि अगर हम आज चुनाव आयोग की स्वतंत्रता और निष्पक्षता पर सवाल उठाते हैं, तो कल कोई और संवैधानिक संस्था भी इसी शक के घेरे में आ सकती है।
विरोधी धाराओं ने चुनाव आयोग की उस प्रक्रिया पर चिंता जताई है जिसे SIR — विशेष गहन पुनरीक्षण (Special Intensive Revision) कहा जाता है। यह प्रक्रिया मतदाता सूची (voter list) की समीक्षा और साफ-सफाई के लिए है, ताकि सूची में नामों की ग़लतियाँ सुधारी जाएँ। विपक्ष का आरोप है कि इस समीक्षा में भेदभाव किया जा रहा है, कुछ मतदाताओं को अनावश्यक रूप से हटाया जा रहा है या उनकी पहचान पर सवाल उठाए जा रहे हैं।
चुनाव आयोग के मुख्य आयुक्त ज्ञानेश कुमार ने प्रेस कॉन्फ्रेंस में इन आरोपों का सामना करते हुए कहा कि आयोग का कोई पक्ष नहीं है — न सत्ता पक्ष का, न विपक्ष का — और उसका एकमात्र मकसद है हर पात्र मतदाता का नाम मतदाता सूची में होना और विशेष गहन पुनरीक्षण की प्रक्रिया को नियमों के मुताबिक निष्पक्ष तरीके से अपनाया जाना।
senior नागरिकों के समर्थन का एक और आयाम यह है कि वे लोकतंत्र की स्थिरता के लिए चिंता व्यक्त कर रहे हैं। उनका मानना है कि लोकतांत्रिक संस्थाएं सिर्फ तभी मजबूत रहती हैं जब लोग उन पर भरोसा करें। यदि चुनाव आयोग पर कटु आरोप लगते रहें, और समाज में यह धारणा बनी रहे कि चुनावों में गड़बड़ी होती है, तो यह सिर्फ वर्तमान चुनावों की समस्या नहीं बनेगी — बल्कि भविष्य की पीढ़ियों के लिए भी लोकतांत्रिक विश्वास को कमजोर करने वाली आग बन सकती है।
इसके अलावा, उन्होंने यह इंगित किया है कि पहले भी संवैधानिक संस्थाओं — जैसे न्यायपालिका, संसद — को निशाना बनाया गया, और अब यह दौर चुनाव आयोग तक आ गया है। यह एक चेतावनी-परिणाम है: यदि लोकतांत्रिक संस्थानों के मूलाधारों पर लगातार हमला होता रहा, तो एक दिन वे अपने कर्तव्यों से हट सकती हैं, या उनकी प्रतिष्ठा ऐसी गिर सकती है कि आम जनता उन पर भरोसा करना बंद कर दे।
दूसरी ओर, विपक्षी दलों की गैलेरी में यह आवाज़ भी गूंज रही है कि उनका संघर्ष सिर्फ राजनीतिक नहीं है, बल्कि यह लोकतांत्रिक जवाबदेही का सवाल है। कई विपक्षी नेताओं ने मतदान प्रणाली, मतदाता सूची और आयोग की प्रक्रियाओं में पारदर्शिता मांगने की बात कही है।
लेकिन यह समर्थन 272 वरिष्ठ नागरिकों का सिर्फ बयान नहीं है — यह एक बहु-आयामी संदेश है:
लोकतंत्र को सिर्फ चुनाव जीत-हार का खेल न समझें; यह एक संरचना है जिसे बनाए रखना मुश्किल है, लेकिन नष्ट करना बहुत आसान हो सकता है।
संवैधानिक संस्थाएँ सिर्फ कागज़ पर नहीं होतीं — वे जनता की नज़र में अपनी प्रतिष्ठा बनाए रखती हैं, और यह प्रतिष्ठा जनता की आस्था से जुड़ी है।
आरोप लगना लोकतंत्र में आम बात हो सकती है, लेकिन आरोपों का असर तब खतरनाक हो जाता है जब वे समाज की बुनियाद — निष्पक्ष चुनाव — पर हमला करते हैं।
और सबसे बड़ी बात: वरिष्ठ नागरिक, जिन्होंने अपने जीवन में लोकतंत्र को महसूस किया है, वे यह कहना चाहते हैं कि हमें इस लोकतांत्रिक संरचना को बचाने की ज़रूरत है — सिर्फ राजनीतिक जीत-हार के लिए नहीं, बल्कि आने वाली पीढ़ियों की सुरक्षा के लिए।
संक्षेप में, ये 272 प्रतिष्ठित नागरिक उस वक्त खड़े हुए हैं जब लोकतांत्रिक चुनौतियों की आंधी तेज़ हो रही है। उनका पत्र सिर्फ एक व्यक्तिगत समर्थन नहीं है — यह एक चेतावनी, एक बुलंद आवाज़, और एक आग्रह है: लोकतंत्र को कमज़ोर मत बनने देना।
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