Jawaharlal Nehru University Students’ Union (JNUSU) चुनाव गिनती: बाम गठबंधन और Akhil Bharatiya Vidyarthi Parishad (ABVP) में कड़ी टक्कर
- byAman Prajapat
- 06 November, 2025
🗳️ JNUSU चुनाव 2025: जब विचारधारा बनाम राष्ट्रवाद की जंग JNU के गलियारों में गूँज उठी
दिल्ली की ठंडी हवाओं के बीच जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय (JNU) एक बार फिर गर्म है। कैंपस की दीवारों पर लगे पोस्टरों, रात भर चले नुक्कड़ भाषणों और कैंटीनों में गूँजती राजनीतिक बहसों के बीच 2025 का JNUSU चुनाव सिर्फ एक छात्र संघ का मतदान नहीं, बल्कि दो विचारधाराओं की खुली टक्कर बन चुका है — एक ओर बाम गठबंधन (Left Unity) और दूसरी ओर अखिल भारतीय विद्यार्थी परिषद (ABVP)।
गिनती अभी जारी है, और जैसे-जैसे मतपत्र खुल रहे हैं, JNU का माहौल हर पल और दिलचस्प होता जा रहा है।
🔹 गिनती का हाल: कांटे की टक्कर
गिनती के शुरुआती राउंड से ही दोनों खेमों में तनाव बना हुआ है। बाम गठबंधन की उम्मीदवार Aditi Mishra अध्यक्ष पद पर मामूली बढ़त बनाए हुए हैं, जबकि ABVP के Vikas Patel हर राउंड में कड़ी चुनौती दे रहे हैं।
उपाध्यक्ष पद पर बाम की K Gopika Babu मजबूत स्थिति में हैं, परन्तु महासचिव और संयुक्त सचिव पद पर तस्वीर उतनी साफ नहीं है।
राजनीति का यह मुकाबला किसी टीवी डिबेट से कम नहीं लग रहा — हर वोट पर तालियाँ, हर गिनती पर जयकारा।
🔸 कैंपस में चुनाव का माहौल
JNU में चुनाव सिर्फ एक वोटिंग प्रक्रिया नहीं, एक संस्कृति है। यहाँ हर पोस्टर हाथ से लिखा जाता है, हर उम्मीदवार खुद हॉस्टलों में जाकर लोगों से बात करता है।
किसी ने कहा था — “JNU की राजनीति भारत की राजनीति का भविष्य दिखाती है।” और सच में, जब JNU के बच्चे अपने विचारों पर बहस करते हैं, तो वो किसी टीवी एंकर की तरह नहीं, बल्कि सच्चे नागरिक की तरह करते हैं।
चाय की दुकानों पर चर्चा है — “इस बार कौन जीतेगा?”
हॉस्टलों के लॉन में पोस्टर लटक रहे हैं — “Azadi for education, not for sedition.”
ABVP समर्थक कह रहे हैं — “राष्ट्रवाद ही असली छात्र-हित है।”
जबकि बाम गठबंधन का नारा है — “Education, Equality, Emancipation.”
यह टकराव सिर्फ वोटों का नहीं, विचारों का युद्धक्षेत्र है।
🔹 इस बार का चुनाव इतना खास क्यों?
युवा पीढ़ी का बदलाव:
JNU हमेशा विचारशील छात्रों का गढ़ रहा है, लेकिन इस बार अधिकतर प्रथम वर्ष के छात्रों का झुकाव ABVP की ओर भी देखा गया। यह बदलाव आने वाले वर्षों में छात्र-राजनीति का चेहरा बदल सकता है।
महिला नेतृत्व की मज़बूती:
चार में से दो प्रमुख उम्मीदवार महिलाएँ हैं — Aditi Mishra (Left) और Tanya Kumari (ABVP)।
ये दर्शाता है कि JNU में महिला-सशक्तिकरण केवल नारा नहीं, बल्कि वास्तविकता है।
राष्ट्रीय बनाम स्थानीय मुद्दे:
बाम गठबंधन जहाँ शिक्षा-नीति, फीस वृद्धि, हॉस्टल की दिक्कतों और कैंपस में भेदभाव पर ध्यान दे रहा है, वहीं ABVP राष्ट्रवाद, पारदर्शिता और प्रशासनिक सुधार की बात कर रहा है।
काउंसिलर चुनावों में दिलचस्प मोड़:
ABVP ने अब तक घोषित परिषद सीटों में बढ़त बनाई है।
वहीं Left Unity अपने पुराने किलों — जैसे स्कूल ऑफ सोशल साइंसेज़ और लैंग्वेज सेंटर — में अभी भी मज़बूती से टिके हुए हैं।
🔸 JNU चुनावों का ऐतिहासिक संदर्भ
JNU का छात्र संघ हमेशा से देश की मुख्यधारा की राजनीति को दिशा देता आया है।
चाहे वो कन्हैया कुमार का दौर रहा हो या आशीष खंडेलवाल और गीता कुमारी जैसे नेताओं का, JNU ने बार-बार साबित किया है कि यहाँ की राजनीति विचारों की प्रयोगशाला है।
यहाँ के भाषण सिर्फ वोट नहीं बदलते, वे देश के सोचने का तरीका बदल देते हैं।
हर पीढ़ी में एक आंदोलन उभरता है —
1970s में समाजवाद,
1990s में उदारीकरण के विरोध,
और अब 2020s में शिक्षा और अभिव्यक्ति की स्वतंत्रता की बहसें।
JNU इन सबका केंद्र रहा है।
🔹 चुनाव के दिन का नज़ारा
सुबह 9 बजे से मतदान शुरू हुआ था। लाल भवन, साबरमती, गोदावरी, नर्मदा — हर हॉस्टल में लाइनें लगी थीं।
छात्रों के चेहरों पर उत्साह, पोस्टरों पर जोश, और नारों में ऊर्जा थी।
“लाल सलाम!” और “भारत माता की जय!” की गूँज साथ-साथ सुनाई दे रही थी — जैसे दो विचारधाराएँ एक ही मंच पर अपनी जगह बना रही हों।

🔸 गिनती केंद्र पर माहौल
कॉल सेंटर के पास बने हॉल में मतगणना जारी है।
हर काउंटर पर प्रतिनिधि बैठे हैं, मोबाइल कैमरे चालू हैं, हर वोट पर नजरें टिकाई हुई हैं।
बाहर समर्थकों की भीड़ है — कोई गीत गा रहा है, कोई नारे लगा रहा है, और कोई बस चुपचाप आसमान की ओर देख रहा है, जैसे आने वाला वक्त सोच रहा हो।
🔹 सोशल मीडिया की भूमिका
JNU चुनाव अब सिर्फ कैंपस की सीमा में नहीं बंधे रहे।
X (Twitter), Instagram और YouTube पर हर उम्मीदवार का कैम्पेन ट्रेंड कर रहा है।
Left के पेजों पर “#SaveEducation” तो ABVP के पोस्ट पर “#VoiceOfYouth” ट्रेंड कर रहा है।
यह अब डिजिटल विचार-युद्ध भी बन चुका है।
🔸 विचारधारा की जड़ें
Left Unity हमेशा से विश्वविद्यालय में अपनी पकड़ बनाए हुए है। CPI, SFI, AISA जैसे संगठनों का संयुक्त मोर्चा यहाँ गहरी जड़ें रखता है।
ABVP ने पिछले कुछ वर्षों में इन जड़ों को चुनौती दी है — “राष्ट्रवादी अकादमिक आंदोलन” के रूप में खुद को पेश किया है।
यह सिर्फ राजनीतिक टक्कर नहीं, बल्कि दो दृष्टिकोणों का संघर्ष है —
एक कहता है, “स्वतंत्रता का अर्थ है आलोचना।”
दूसरा कहता है, “स्वतंत्रता का अर्थ है जिम्मेदारी।”
🔹 मतदाताओं की राय
कई छात्रों से बातचीत में यह बात उभरकर आई कि अब JNU में मुद्दे केवल वैचारिक नहीं रहे — अब प्रशासनिक पारदर्शिता, छात्रवृत्ति में देरी, और प्लेसमेंट जैसी बातें भी वोट को प्रभावित कर रही हैं।
“हम वैचारिक बहस चाहते हैं, पर हमें हॉस्टल का पानी भी चाहिए,” एक छात्र ने मुस्कुराते हुए कहा।
🔸 अंतिम रुझान और संभावनाएँ
अब तक के रुझानों में बाम गठबंधन थोड़ी बढ़त पर है, परन्तु अंतिम परिणाम अभी बाकी हैं।
पिछली बार की तरह इस बार भी आधी रात तक नतीजे आने की उम्मीद है।
अक्सर आखिरी 1000 वोट ही बाज़ी पलट देते हैं — और यही रोमांच JNU चुनाव को अनोखा बनाता है।
🔹 JNU का भविष्य
चाहे Left जीते या ABVP, एक बात तय है — JNU फिर से विचारों का केंद्र बन गया है।
यह चुनाव दिखाता है कि भारत की युवा पीढ़ी न तो चुप है, न ही बेपरवाह।
वे सवाल पूछती है, जवाब चाहती है, और ज़रूरत पड़ने पर सिस्टम को चुनौती देने से पीछे नहीं हटती।
Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.
"हाईकोर्ट ने प्राइव...
Related Post
Hot Categories
Recent News
Daily Newsletter
Get all the top stories from Blogs to keep track.








