दूसरे शख्स से बात करने पर भड़का पति; काट दी पत्नी की नाक, फिर खुद ही पहुंचा अस्पताल
- byAman Prajapat
- 06 November, 2025
मध्य प्रदेश के झाबुआ ज़िले से इंसानियत को झकझोर देने वाली घटना सामने आई है। एक पति ने सिर्फ इसलिए अपनी पत्नी की नाक काट डाली क्योंकि उसे शक था कि वह किसी दूसरे आदमी से बात करती है। सुनने में यह बात जितनी अजीब लगती है, हक़ीक़त उससे कहीं ज़्यादा दर्दनाक है। यह घटना न सिर्फ़ एक घर के टूटने की कहानी है, बल्कि यह समाज में बढ़ती घरेलू हिंसा और मानसिक असंतुलन का भी आईना दिखाती है।
दरअसल, झाबुआ के एक छोटे से गाँव में यह घटना उस वक्त हुई जब पति-पत्नी के बीच मामूली बात पर विवाद हुआ। बात इतनी बढ़ गई कि पति ने अपने गुस्से और शक के आगे इंसानियत को भी ताक पर रख दिया। उसने पत्नी को ताने दिए, आरोप लगाए, और फिर एक तेज़ ब्लेड उठाकर उसकी नाक पर वार कर दिया। खून बह निकला, पत्नी दर्द से चीख उठी, और कुछ ही पलों में ज़मीन पर गिर पड़ी। आस-पास के लोग दौड़कर आए, मगर तब तक उसका चेहरा लहूलुहान हो चुका था।
गांव वालों के अनुसार, पति को पिछले कुछ हफ्तों से यह वहम था कि उसकी पत्नी किसी दूसरे व्यक्ति से मोबाइल पर बात करती है। उसने कई बार पूछताछ की, लेकिन पत्नी ने हर बार इनकार किया। यह शक धीरे-धीरे जुनून में बदल गया। और एक दिन उसने अपने ही घर की चौखट पर वह दरिंदगी कर डाली जिसकी कल्पना भी कोई नहीं कर सकता।
यहाँ सबसे चौंकाने वाली बात यह रही कि हमले के तुरंत बाद वही पति, जिसने पत्नी की नाक काटी थी, खुद उसे मोटरसाइकिल पर बैठाकर अस्पताल लेकर गया। झाबुआ ज़िला अस्पताल के डॉक्टरों ने बताया कि महिला की हालत स्थिर है, मगर चेहरे पर गहरी चोट आई है और नाक का एक हिस्सा पूरी तरह से अलग हो गया है। डॉक्टरों ने तत्काल प्राथमिक उपचार के बाद महिला को इंदौर के बड़े अस्पताल रेफर कर दिया, जहाँ प्लास्टिक सर्जरी की जाएगी।
पुलिस ने आरोपी को गिरफ्तार कर लिया है और धारा 326 (गंभीर चोट पहुँचाने) तथा अन्य संबंधित धाराओं के तहत केस दर्ज किया गया है। पूछताछ में आरोपी ने अपना अपराध कबूल कर लिया है। उसने कहा कि उसे “गुस्सा आ गया था” और “वह खुद भी नहीं जानता था कि उसने ऐसा क्यों किया।” लेकिन पुलिस का कहना है कि यह कोई अचानक हुआ अपराध नहीं था, बल्कि यह लंबे समय से पनप रहे शक और असुरक्षा की जड़ में छिपी हुई हिंसा का नतीजा है।
यह घटना समाज के उस कड़वे सच को सामने लाती है जिसे हम अक्सर “घर का मामला” कहकर टाल देते हैं। पति-पत्नी के झगड़ों को मामूली कहकर अनदेखा कर देना, एक बड़ी सामाजिक बीमारी को जन्म देता है। घरेलू हिंसा सिर्फ शारीरिक नहीं होती; मानसिक, भावनात्मक और सामाजिक रूप से भी औरतें ऐसी हिंसा झेलती हैं। जब तक समाज और व्यवस्था इसे गंभीर अपराध के रूप में नहीं लेगी, ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी।

गाँव के सरपंच ने बताया कि यह दंपती मजदूरी करके अपना घर चलाता था। आर्थिक स्थिति बेहद कमजोर थी। पति को शराब पीने की लत भी थी और इसी लत ने उनके रिश्ते को और ज़हरीला बना दिया था। कई बार पंचायत ने दोनों को समझाया था, मगर बात वहीं की वहीं रही। यह घटना सिर्फ एक व्यक्ति की गलती नहीं, बल्कि उस मानसिकता की है जो “स्त्री को संपत्ति” मानती है।
आज जब समाज शिक्षा और समानता की बात कर रहा है, तब भी ऐसे अपराध हमें सदियों पीछे ले जाते हैं। और सोचने पर मजबूर करते हैं कि आखिर एक इंसान में इतना अंधा गुस्सा, इतना अविश्वास क्यों भर जाता है? क्या वजह है कि रिश्तों में प्यार, भरोसा और समझदारी की जगह अब शक, ताने और हिंसा ने ले ली है?
महिला अधिकार कार्यकर्ताओं ने इस घटना की कड़ी निंदा की है। उनका कहना है कि यह सिर्फ एक “अपराध” नहीं बल्कि “संस्कृति की बीमारी” है, जो पितृसत्तात्मक सोच और सामाजिक असमानता से पैदा होती है। उन्होंने सरकार और पुलिस से सख्त कार्रवाई की माँग की है, ताकि ऐसे मामलों में एक उदाहरण स्थापित हो सके और औरतों को न्याय मिल सके।
इस घटना से जुड़ा एक और दिल दहला देने वाला पहलू यह है कि आरोपी ने जब अपनी पत्नी को अस्पताल पहुँचाया, तो वह वहीं बैठकर उसकी हालत देखता रहा। डॉक्टरों ने बताया कि वह बार-बार कहता रहा – “मुझे नहीं पता मैंने क्या किया, मैंने गलती कर दी।” लेकिन क्या उस पछतावे का कोई मोल है? क्या वह दर्द मिट सकता है जो उस औरत को हर दिन दर्पण में अपने चेहरे को देखकर महसूस होगा?
समाज को अब इस सोच पर गहराई से विचार करने की जरूरत है।
शक और नियंत्रण के नाम पर औरतों पर हिंसा कब तक?
क्या पति को पत्नी की ज़िंदगी पर अधिकार है या साथ चलने की जिम्मेदारी?
क्या गुस्से में किसी का चेहरा बिगाड़ देना मर्दानगी है? या कायरता?
इन सवालों के जवाब हमें हर घर, हर गली और हर पंचायत में ढूँढने होंगे। क्योंकि जब तक हम यह नहीं समझेंगे कि “प्यार का मतलब अधिकार नहीं, बल्कि सम्मान है,” तब तक ऐसी घटनाएँ होती रहेंगी।
झाबुआ की यह घटना एक चेतावनी है — रिश्तों में संवाद और भरोसे की कमी किसी भी संबंध को विनाश की ओर ले जा सकती है। समाज को चाहिए कि ऐसे मामलों में पीड़िता को सिर्फ “सहानुभूति” नहीं, बल्कि “सशक्त समर्थन” दिया जाए।
सरकार को भी चाहिए कि ग्रामीण क्षेत्रों में जागरूकता अभियान चलाए जाएँ, स्कूल-कॉलेजों में भावनात्मक शिक्षा दी जाए, और पुरुषों के मानसिक स्वास्थ्य पर भी ध्यान दिया जाए। क्योंकि जब तक हम यह नहीं समझेंगे कि गुस्से का इलाज हिंसा नहीं, बल्कि समझ और सहानुभूति है — तब तक न जाने कितनी “नाकें” यूँ ही कटती रहेंगी, कितने “चेहरे” यूँ ही टूटते रहेंगे, और कितनी “औरतें” यूँ ही खामोश होकर समाज के डर में जीती रहेंगी।
यह घटना सिर्फ एक परिवार की नहीं — यह हमारे समाज की सामूहिक असफलता की कहानी है। और जब तक हर व्यक्ति अपने भीतर के उस हिंसक सोच से लड़ना शुरू नहीं करेगा, तब तक इंसानियत का चेहरा — उसी महिला की तरह — अधूरा, टूटा और घायल बना रहेगा।
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राजस्थान में अपराधों...
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