थोक मूल्य मुद्रास्फीति में तेजी से गिरावट - अक्टूबर में (-)1.21% पर, जीएसटी कटौती और लाभप्रद आधार का असर
- byAman Prajapat
- 14 November, 2025
भारत की अर्थव्यवस्था में मुद्रास्फीति-प्रवाह को समझने के लिए सबसे महत्वपूर्ण संकेतकों में से एक है Wholesale Price Index (WPI) यानी थोक मूल्य सूचकांक। ये दर्शाता है कि थोक स्तर पर वस्तुओं की कीमतें पिछले वर्ष की तुलना में कैसी गति से बढ़ी या घटी हैं।
क्या हुआ?
अक्टूबर 2025 में भारत में WPI मुद्रास्फीति वर्ष-सँ′ वर्ष-सँ (YoY) आधार पर (-)1.21 % पर आ गई है।
इसका मतलब है कि थोक स्तर पर वस्तुओं की औसत कीमतें पिछले वर्ष की समान अवधि की तुलना में घटी हैं।
ये गिरावट काफी तीव्र है क्योंकि पिछले माह (सितंबर) में यह 0.13% पर थी।
क्यों गिर गई? – मुख्य कारण
भारी आधार-प्रभाव (Base Effect): पिछले वर्ष की वही अवधि में WPI मुद्रास्फीति करीब 2.75% थी। Reuters+1 जब इस तरह की ऊँची संख्या के बाद कम या नकारात्मक वृद्धि होती है, तो “आधार प्रभाव” के कारण पिछली तुलना कठिन हो जाती है, जिससे गिरावट अधिक दिख सकती है।
खाद्य वस्तुओं की कीमतों में गिरावट: खाद्य समूह में मुद्रास्फीति में भारी कमी आई है। उदाहरण के लिए, सब्जियों की कीमतें लगभग 34.97% गिर गई थीं। Reuters इस तरह की गहरी गिरावट थोक स्तर पर समग्र मुद्रास्फीति को बड़ी मात्रा में नीचे खींचती है।
ईंधन-शक्ति कीमतों का दबाव: ईंधन और शक्ति समूह में भी कीमतें घट रही हैं — उदाहरण के लिए, ईंधन-शक्ति में वर्ष-सँ′ वर्ष-सँ गिरावट 2.55% रही।
मैन्युफैक्चरिंग (निर्मित वस्तु) कीमतें कम उछाल पर: इस समूह में बढ़ोतरी तो हुई है (1.54%) लेकिन पिछले महीने की तुलना में यह उछाल धीमी रही।
सरकारी नीतियाँ व जीएसटी कटौती: सरकार द्वारा उपभोक्ता-वस्तुओं पर जीएसटी दरों में कटौती की गई है, जिससे थोक स्तर पर कीमतों पर दबाव पड़ा है।
अर्थ कौन-कौन से?
यह संकेत करता है कि थोक स्तर पर इनपुट व वस्तुओं की लागत में वृद्धि का दबाव कम हुआ है, जो चालू समसामयिक मौद्रिक दबाव के दृष्टिकोण से अच्छा है।
उपभोक्ता स्तर पर (CPI आधारित) मुद्रास्फीति भी रिकॉर्ड निचले स्तर पर पहुँच रही है, जिससे उपभोक्ता-मूल्य दबाव लगभग शांत दिख रहे हैं।
इस-प्रकार, Reserve Bank of India (RBI) के लिए दर-कटौती का रास्ता खुलता दिख रहा है, क्योंकि मुद्रास्फीति लक्ष्य से नीचे है।
व्यवसायों के लिए इनपुट लागत कम होने का मतलब है- मुनाफे पर असर, उत्पादन बढ़ाने की संभावना, या निवेश-विस्तार की संभावना।
लेकिन गिरावट का अर्थ यह नहीं कि अर्थव्यवस्था में सब कुछ सुधर रहा है — कभी-कभी कीमतों में गिरावट उत्पादन-दबाव या मांग-कम होने का संकेत भी हो सकती है।

जोखिम व सावधानियाँ
मुद्रास्फीति का बहुत गहरा उतर जाना “विषम” भी हो सकता है: यदि गिरावट का कारण मांग-कम होना हो, तो अर्थव्यवस्था स्लोडाउन की ओर जा सकती है।
खाद्य व ऊर्जा जैसे प्रमुख समूहों में गिरावट अस्थायी भी हो सकती है — मौसमी उतार-चढ़ाव, आपूर्ति में बदलाव-इत्यादि का प्रभाव हो सकता है।
आधार-प्रभाव के कारण वास्तविक “मूल” गति समझने में कठिनाई हो सकती है — कि क्या कीमतें वास्तव में गिर रही हैं, या पिछले वर्ष की ऊँची संख्या से “तारीफ” बन रही है।
वैश्विक कमोडिटी-प्राइस, आयात-उत्पादन शृंखला, सरकार की नीतियाँ (जैसे सब्सिडी, कर) आगे की दिशा निर्धारित करेंगी।
आगे का परिदृश्य
यदि थोक मुद्रास्फीति लगातार नकारात्मक बनी रही, तो बैंकिंग व वित्तीय नीति-निर्माता इसे संकेत के रूप में देख सकते हैं कि उधार-लागत व निवेश-प्रेरणा बढ़ाई जानी चाहिए।
स्टॉक-मार्केट, मुद्रा (रुपया) आदि पर भी असर होगा — यदि मुद्रास्फीति कम है तो रुपया मजबूत हो सकता है, लेकिन मांग-कम होने की आशंका से भी दबाव बन सकता है।
सरकार व बैंक को यह देखना होगा कि कीमतें बहुत धीमी गति से क्यों बढ़ रही हैं — यदि यह मांग-कमि का संकेत है, तो आर्थिक वृद्धि के लिए चिंतित होना पड़ेगा।
अगले माहों में इनपुट-कच्चा माल मूल्य, वैश्विक तेल व कोल प्राइस, तथा जीएसटी-नियोजन जैसे कारक मॉनिटर किए जाने चाहिए।
निष्कर्ष
तो देखिए भाई, यह गहरी गिरावट बताती है कि थोक स्तर पर कीमतों का दबाव थोड़ा कम हुआ है — जीएसटी कटौती, खाद्य-सप्लाई सुधार, और मौजूदा आधार प्रभाव ने मिलकर यह बनावट बनाई है। लेकिन याद रहे: यह एक चेतावनी भी हो सकती है कि अर्थव्यवस्था में मांग उतनी तेज नहीं है जितनी चाहिये। इसे उत्सव-मोड़ पर नहीं, बल्कि संजीदगी से समझना पड़ेगा।
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