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भारतीय बैंक दशक से अधिक परिपक्व हुए- Reserve Bank of India गवर्नर Sanjay Malhotra ने कही बड़ी बात

भारतीय बैंक दशक से अधिक परिपक्व हुए- Reserve Bank of India गवर्नर Sanjay Malhotra ने कही बड़ी बात

भारत के बैंकिंग-वित्तीय तंत्र में पिछले एक दशक में जो बदलाव हुआ है, वह सिर्फ संख्या में नहीं बल्कि संरचना, प्रक्रिया, विनियमन और जोखिम-प्रबंधन के दृष्टिकोण से भी गहरा रहा है। Sanjay Malhotra (RBI गवर्नर) ने हाल में कहा है कि “भारतीय बैंक आज उस स्थिति में हैं कि वे दशक पहले की तुलना में कहीं अधिक परिपक्व हैं।”  आइए इस कथन की पृष्ठभूमि, अर्थ और चुनौतियों को विस्तार से देखें।

1. पृष्ठभूमि — एक दशक पहले की स्थिति

एक दशक पहले, बैंकिंग जगत में काफी चुनौतियाँ थीं: एसेट क्वालिटी में कमी, एनपीए (Non Performing Assets) का बढ़ता बोझ, पुरानी ऋण संरचनाएँ, कमजोर पूंजी ढांचा और बैंक अनुमानों-स्वीकृति में ढिलाई। अनेक बैंक-संस्थाएँ ऐसी थीं जिन्हें मजबूत पूंजी उपायों, पुनर्गठन और निगरानी तंत्र की आवश्यकता थी।
मालहोत्रा ने यह उल्लेख किया है कि उस समय व्यावसायिक बैंकिंग प्रणाली और नियामक फ्रेमवर्क का स्वरूप आज जैसा विकसित नहीं था।  

2. आज की स्थिति — परिपक्वता की ओर रुझान

मालहोत्रा के अनुसार, आज बैंक ऐसे मुकाम पर पहुँच चुके हैं जहाँ:

क्रेडिट और जमा तीन गुना तक बढ़ चुके हैं।  

पूंजी बफर्स (जैसे CRAR – Capital to Risk-Weighted Assets Ratio) में वृद्धि हुई है। 

CET1 (Common Equity Tier 1) अनुपात 10.43% से बढ़कर लगभग 14.73% हो गया है।  

बैंक अब बेहतर एसेट क्वालिटी के साथ काम कर रहे हैं, यानी एनपीए का प्रबंधन बेहतर हुआ है, और मुनाफे-रिटर्न (ROA, ROE) में सुधार देखा गया है। 

बैंकिंग सिस्टम अब बड़ी पूंजी के साथ खड़ा है; उदाहरण के लिए बैंकिंग सिस्टम का टियर1 कैपिटल लगभग ₹8 लाख करोड़ से बढ़कर ~₹26 लाख करोड़ हो गया है।  

ये बदलाव सिर्फ सांख्यिकीय नहीं, बल्कि बैंकिंग व्यवहार, नियामक-निगरानी, जोखिम-प्रबंधन और बाजार-भावना में भी आए हैं।

3. किन कारणों से सुधार हुआ?

कुछ प्रमुख कारण यथास्थित हैं:

नियामक सुधार — जैसे Insolvency & Bankruptcy Code (IBC) का लागू होना, बैंक पुनर्संरचना और एनपीए समाधान के लिए बेहतर प्रक्रिया।  

बैंक मर्जर और सार्वजनिक क्षेत्र बैंक (PSB) पर पुनर्स्थापन और पुनःपूंजीकरण।

बैंकिंग स्वीकार्यता और निगरानी में सुधार, बैंक-बोर्ड स्तर पर जवाबदेही बढ़ी। मालहोत्रा ने कहा है कि नियामक अब बैंक बोर्ड की जिम्मेदारी लेने का काम नहीं कर रहा है; बल्कि बैंक स्व-निर्णय लेने की स्थिति में हैं।  

आर्थिक परिवेश में सुधार, भारत की अर्थव्यवस्था ने वैश्विक चुनौतियों के बावजूद मनोबल दिखाया और बैंकिंग सेक्टर को एक बेहतर कवच मिला।  

पूंजी-मार्केट, जमा-उपयोग-वित्त का विस्तार, तथा बैंकिंग एक्टिविटी का विविधीकरण।

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4. क्या “परिपक्वता” का मतलब है कि सब कुछ परिपूर्ण है?

यहाँ हम सच बोलते हैं। नहीं — परिपक्वता का अर्थ यह है कि बैंकिंग प्रणाली ने प्रमुख कमजोरियों से काफी हद तक उभर लिया है, लेकिन चुनौतियाँ अभी भी मौजूद हैं। कुछ बातें इस प्रकार:

जोखिम कभी खत्म नहीं होता; बैंकिंग बिजनेस inherently जोखिम-पूरित है। हमें सतर्क रहना होगा।

विभिन्न बैंक-श्रेणियों में अभी भी काम करना बाकी है — छोटे बैंक, क्षेत्रीय बैंक, सहकारी बैंक में सुधार की गुंजाइश अधिक है।

तकनीकी चुनौतियाँ, साइबर सुरक्षा, फिनटेक-सहयोग और डिजिटल-उत्क्रमण (digital disruption) नए मोर्चे हैं। जैसा मालहोत्रा ने फिनटेक से संबंधित कहा है।  

वैश्विक अर्थव्यवस्था की चुनौतियाँ, संवेदनशील वित्त-परिस्थितियाँ, भू-राजनीतिक झटके आदि बैंकिंग-प्रणाली को किसी भी समय प्रभावित कर सकते हैं।

5. आगे क्या करना है — मंजिल की ओर

परिपक्वता की दिशा में आगे बढ़ने के लिये बैंकिंग क्षेत्र और नियामक निम्नलिखित पहल कर सकते हैं:

डिजिटलीकरण और ग्राहक-अनुभव को और ऊँचा उठाना। बैंकिंग सेवा-मॉडल को और लचीला बनाना ताकि अनेक तरह के ग्राहकों तक बेहतर पहुँच हो सके।

जोखिम-प्रबंधन को और सुदृढ़ करना — निर्धारित कर देना कि जब नए उत्पाद, नए ऋण मॉडल, नए ग्राहकों के लिए बैंक आगे बढ़ रहे हैं तो पूर्व-जांच (due-diligence) और निगरानी (monitoring) का तंत्र मजबूत हो।

बैंक-फिनटेक सहकार्य को बढ़ावा देना ताकि बैंकिंग-इनोवेशन व वित्त-समावेशन में गति आए।

पूंजी पर्याप्तता, लाभ-क्षमता और एसेट क्वालिटी को सतत बनाए रखना। बैंक-बोर्ड, प्रबंधन और नियामक को मिलकर आगे काम करना होगा।

क्षेत्रीय-वित्तीय समावेशन (financial inclusion) को तेज करना ताकि बैंकिंग-सेवा-शून्य क्षेत्र, कमजोर वित्तीय समूह, ग्रामीण-ग्रामीण क्षेत्र शामिल हों।

बैंकिंग शिक्षा-जागरूकता (financial literacy) बढ़ाना ताकि ग्राहक-हिते में बैंकिंग-उत्पादों का उपयोग सुरक्षित एवं समझदारी से हो सके।

6. निष्कर्ष

तो बात पूरी यह है कि आज भारतीय बैंक सिर्फ “ठीक हो गए हैं” यह कहना बहुत कम होगा – बल्कि उन्होंने एक ऐसा रूप ले लिया है जहाँ वे ज्यादा जिम्मेदार, बेहतर संरचित, जोखिम-प्रबंधन में सतर्क, और विश्वसनीय उपकरणों के साथ काम कर रहे हैं। और इस परिवर्तन के पीछे न केवल बैंक-प्रबंधन बल्कि नियामक-प्रेरणा, अर्थव्यवस्था-जीवन, ग्राहक-आवश्यकताएँ और वैश्विक वित्त-परिस्थितियाँ भी हैं।

Reserve Bank of India गवर्नर मालहोत्रा का कहना है कि अब बैंक-डिस्कशन सिर्फ “कैसे सुधरें” का नहीं रह गया है बल्कि “कैसे आगे बढ़ें और नया बनाएँ” का है। इस दृष्टि से, हाँ — बैंकिंग क्षेत्र ने एक दशक से भी अधिक समय में वाकई यात्रा तय की है।

 


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