अक्टूबर में औद्योगिक उत्पादन गिरा — 14 महीने का निचला स्तर, सिर्फ 0.4%
- byAman Prajapat
- 02 December, 2025
देश की औद्योगिक पटरी जो पिछले कुछ महीनों से धीरे-धीरे चमक रही थी, उसे ले कर ठहराव हो गया। अक्टूबर 2025 में औद्योगिक उत्पादन (IIP) की साल-दर-साल ग्रोथ सिर्फ 0.4 प्रतिशत रही — यानि लगभग स्थिरता। ये वो गति है जिस पर हम पिछले 14 महीनों में कहीं नहीं देखे थे।
पलटा मुमकिन है, पर अक्तूबर की हालत दिखाती है कि इंडस्ट्रियल मशीनें इस बार रफ्तार नहीं पकड़ पाईं — कम काम के दिन, घटती मांग, और कुछ सेक्टरों की सुस्ती ने मिल कर ये ठहराव लाया।
📉 कौन से सेक्टरों ने पीछे खिंचाया
मैन्युफैक्चरिंग — जो IIP का लगभग 78% हिस्सा है — इसने साल-दर-साल अभी भी ग्रोथ दिखाई, लेकिन सिर्फ 1.8%। मतलब, máquinas फिर भी चल रही थीं, मगर रफ्तार धीमी थी।
खनन (Mining) — यहाँ गिरावट रही; उत्पादन रुक-सा गया। सालाना आधार पर –1.8% हुआ।
बिजली (Electricity) — सबसे झटका यहाँ लगा। बिजली उत्पादन गिरकर –6.9% हो गया, जो कि पिछले साल इसी महीने की तुलना में ख़राब प्रदर्शन है।
बाकी यूज़-आधारित श्रेणियों (use-based categories) में भी तालमेल बिगड़ा दिखा:
कैपिटल गुड्स (Capital Goods) में हल्की बढ़ोतरी रही — लेकिन वो भी पहले की तुलना में कम थी।
मध्यवर्ती सामान (Intermediate Goods) और इन्फ्रास्ट्रक्चर / कंस्ट्रक्शन गुड्स में थोड़ी मजबूती थी।
उपभोक्ता टिकाऊ (Consumer Durables) और अन टिकाऊ (Non-durables) सामानों की मांग ठहर गई या गिर गई।
📆 क्या वजह बनी इस सुस्ती की?
भाई — reasons साधारण हैं, लेकिन असर गहरा।
अक्टूबर में देश में कई त्योहार हुए — यानि कामकाजी दिन कम। इस वजह से उत्पादन, शेड्यूल, मजदूर — सब प्रभावित हुए।
कुछ राज्यों में मानसून की देरी, मौसम में नरमी — बिजली की मांग भी कम हुई; बिजली उत्पादन घटा।
देश के बड़े माइनिंग बेस और ऊर्जा-निर्भर सेक्टरों में सुस्ती ने भी असर डाला — कोयला, खनिज, बिजली जैसी बुनियादी चीज़ों की कमी या मांग में गिरावट, समूचे इंडस्ट्री को पीछे खींच ले गई।
लागत, कच्चा माल, लॉजिस्टिक्स — इन सबका दबाव बढ़ा है; उत्पादन महंगा पड़ रहा है, जिससे फैक्ट्रियों ने ऑर्डर / उत्पादन धीमा कर दिया। कई जगह, ऑर्डर बुकिंग कम मिली।

🧭 इसका मतलब क्या है — भविष्य के लिए संकेत
इस ग्रोथ स्लिप से ये साफ हुआ कि अभी भारतीय उद्योगों की रिकवरी स्थिर नहीं — हिलती-डुलती रही है। अगर मैन्युफैक्चरिंग, बिजली और माइनिंग सीगमेंट सुधरे नहीं, तो अगले महीने भी मुश्किल बनी रहेगी।
मांग कमजोर — अगर उपभोक्ता खर्च या निवेश नहीं बढ़े, तो उत्पादन सुस्ती को मात नहीं दे पाएगा।
सरकार और उद्योग जगत को चाहिए कि वो सप्लाई-चेन, इनपुट लागत, कच्चे माल की उपलब्धता जैसे बुनियादी 問题ों पर ध्यान दे; तभी ‘सबेरा’ दिखेगा।
हालांकि — कुछ सेक्टर्स (कैपिटल गुड्स, निर्माण) में हल्की मजबूती देखी गई है; अगर सरकार का इन्फ्रास्ट्रक्चर फैसले तुले हुए हैं, वो एक उम्मीद की किरण हो सकती है।
अगर आप चाहें — तो मैं अगले 6–12 महीनों की संभावित औद्योगिक ग्रोथ का पूर्वानुमान (forecast analysis) लिख सकता हूँ — देखिएगा कि मंदी से वापसी कब तक हो सकती है, क्या सियासी/वैश्विक जोखिम बने रहेंगे, वगैरह।
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