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आपातकाल में जॉर्ज फर्नांडिस: भेष बदलकर मिशन, कोलकाता गिरिजाघर में गिरफ्तारी और लोकतंत्र की लड़ाई

आपातकाल में जॉर्ज फर्नांडिस: भेष बदलकर मिशन, कोलकाता गिरिजाघर में गिरफ्तारी और लोकतंत्र की लड़ाई

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने आपातकाल की 50वीं बरसी पर अपनी ‘मन की बात’ कार्यक्रम में जॉर्ज फर्नांडिस की चर्चा की। चलिए विस्तार से समझते हैं:

आपातकाल और जॉर्ज फर्नांडिस की भूमिका

आपातकाल (1975-77) के दौरान इंदिरा गांधी की सरकार ने लोकतांत्रिक अधिकारों पर पाबंदियाँ लगा दी थीं। विपक्ष के कई नेता गिरफ्तार कर लिए गए, प्रेस पर सेंसरशिप लगा दी गई।

जॉर्ज फर्नांडिस उन नेताओं में थे जो सरकार के खिलाफ भूमिगत (underground) होकर काम कर रहे थे। वे सरकार को चुनौती देने के लिए साबोटाज (sabotage) योजनाएँ बना रहे थे। उन पर आरोप था कि वे रेलवे लाइनों को उड़ाने, बिजली के टावर गिराने जैसे कामों की योजना बना रहे थे, ताकि इमरजेंसी के खिलाफ विरोध दर्ज कराया जा सके।

कलकत्ता में गिरफ़्तारी

जॉर्ज फर्नांडिस ने भेष बदलकर देश के अलग-अलग हिस्सों में शरण ली थी। वे कलकत्ता (अब कोलकाता) में गिरिजाघर (Church) में छिपे हुए थे।

वहीं पुलिस ने उन्हें पकड़ लिया। गिरफ्तारी के वक्त वे साधु के भेष में थे। उनकी तलाश में इंटेलिजेंस ब्यूरो और पुलिस जुटी हुई थी, क्योंकि सरकार उन्हें “मोस्ट वांटेड” मानती थी।

पेशी और जंजीरें

कलकत्ता में भेष बदल कर घूम रहे थे जॉर्ज फर्नांडिस, गिरिजाघर से हो गए गिरफ्तार
आपातकाल के दौरान जार्ज को जंजीरों में जकड़कर क्यों लाया गया?

गिरफ्तारी के बाद उन्हें कोर्ट में पेश किया गया। पेशी के दौरान हाथों में हथकड़ियाँ और पैरों में बेड़ियाँ लगी थीं।

उनकी तस्वीरें, जिसमें वे जंजीरों में बंधे हुए थे और हाथ उठाकर नारा लगा रहे थे, आपातकाल के विरोध का प्रतीक बन गईं। यह तस्वीर आज भी इमरजेंसी के अत्याचार और लोकतंत्र की लड़ाई की याद दिलाती है।

लोकतंत्र की रक्षा

जॉर्ज फर्नांडिस ने लोकतंत्र के लिए बहुत बड़ा संघर्ष किया। उन पर बरौदा डायनामाइट केस चला, जिसमें उन्हें सरकार के खिलाफ साजिश रचने के आरोप में फंसाया गया था।

लेकिन जनता पार्टी की जीत और इमरजेंसी के खत्म होने के बाद वे छूट गए। बाद में वे केंद्रीय मंत्री, यहाँ तक कि रक्षा मंत्री भी बने।

पीएम मोदी ने ‘मन की बात’ में जॉर्ज फर्नांडिस की कहानी का ज़िक्र कर यह याद दिलाया कि किस तरह आपातकाल के समय लोकतंत्र की रक्षा के लिए अनेक लोगों ने अपना सब कुछ दाँव पर लगाया। यह इतिहास हमें सतर्क रहने की सीख देता है कि लोकतंत्र को हल्के में नहीं लेना चाहिए।


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