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महाराष्ट्र का नया नियम: Tata Trusts की योजना पर भारी पड़ने वाला फैसला

महाराष्ट्र का नया नियम: Tata Trusts की योजना पर भारी पड़ने वाला फैसला

भारत के चैरिटेबल और फाउंडेशन-गवर्नेंस के केबलित परिदृश्यों में एक नया अध्याय खुलने वाला है। Tata Trusts (Tata Trusts) — जो भारत के सबसे प्रतिष्ठित परोपकारी संस्थाओं में गिनी जाती है — को अब एक ऐसे नियम के सामना करना पड़ सकता है जो उसके संचालन के पुराने मॉडल को चुनौती देता है।

महाराष्ट्र सरकार द्वारा पारित नए नियमों के अनुसार पब्लिक ट्रस्ट्स के जीवनकाल ट्रस्टी (lifetime trustee) की संख्या को सीमित करने की पहल की गई है। इस बदलाव का तात्पर्य यह है कि अब ट्रस्ट्स के शासन (governance) ढांचे में उन सदस्य-संख्या, नियुक्ति अवधि, और उत्तराधिकार (succession) की व्यवस्था में बदलाव करने की मजबूरी आ सकती है जिनका प्रयोग अब तक वर्षों से चल रहा था।

उन बदलावों को समझना आवश्यक है — क्योंकि यह सिर्फ एक तकनीकी संशोधन नहीं है, बल्कि एक पारंपरिक ट्रस्ट मॉडल पर प्रभाव छोड़ने वाला फैसला है।

क्यों अहम है यह बदलाव

Tata Trusts का प्रभाव
Tata Trusts के दो प्रमुख ट्रस्ट — Sir Dorabji Tata Trust और Sir Ratan Tata Trust — के माध्यम से भारत के विशाल उद्योग- समूह Tata Sons में नियंत्रण है। इस ट्रस्ट नेटवर्क का शासन ढांचा — जिसमें ट्रस्टी नियुक्ति, जीवनकाल सदस्यता, फैसलों में भागीदारी आदि शामिल हैं — समूह की स्थिरता एवं रणनीति पर असर डालता रहा है। 

नए नियम का मूल आशय
नए नियम का उद्देश्य यह सुनिश्चित करना है कि ट्रस्ट्स के ट्रस्टी-समिति (board of trustees) में जीवनकाल-नियुक्ति (lifetime appointment) की व्यवस्था नियंत्रण केंद्रित न हो जाए और उत्तराधिकारी प्रबंधन (succession management) में पारदर्शिता बनी रहे। यह बदलाव ट्रस्ट-गवर्नेंस को अधिक जवाबदेह (accountable) और खुला (transparent) बनाने का एक कदम माना जा रहा है। 

Tata Trusts के लिए चुनौतियाँ
• यदि ट्रस्टी की संख्या या नियुक्ति अवधि के संदर्भ में नए नियम लागू होते हैं, तो Tata Trusts को अपने वर्तमान ट्रस्टी-मॉडल में बदलाव लाना पड़ेगा — जिसमें जीवनकाल ट्रस्टी की व्यवस्था, नए ट्रस्टी की नियुक्ति प्रक्रिया, ट्रस्टी पदों की रिक्तता एवं उत्तराधिकारी-योजना शामिल हो सकती है।
• इसके अलावा, ट्रस्ट्स के द्वारा अपनाई गई पिछली प्रथाओं (practices) जैसे कि ट्रस्टी की स्व-नियुक्ति, विकल्पहीन पुनर्नियुक्ति (automatic reappointment) आदि पर भी सवाल खड़े हो सकते हैं। उदाहरण के लिए, ट्रस्ट्स में यह विवाद सामने आया है कि क्या एक प्रस्ताव 17 अक्टूबर 2024 को पास हुआ था जो कुछ ट्रस्टी को ‘जीवनकाल’ सदस्य बनाता था, और उसके बाद उन नियुक्तियों पर क्या असर हुआ।

शासन-संस्कृति (governance culture) पर असर
Tata Trusts की शासन-संस्कृति में अब तक काफी मात्रा में “अनुमोदन बिना मत नहीं” (unanimity) की व्यवस्था रही है, यानी किसी भी नियुक्ति या निर्णय के लिए ट्रस्टी-समिति में सर्वसम्मति की आवश्यकता मानी जाती रही है। यह मॉडल अब चुनौती के दौर में दिख रहा है।

कारण, समय एवं प्रभाव
महाराष्ट्र का यह निर्णय ऐसे समय आया है जब टाटा ट्रस्ट्स के भीतर ट्रस्टी-पदों को लेकर अंदरूनी रेखाएँ स्पष्ट हो रही हैं — जैसे कि Mehli Mistry का ट्रस्टी पदावसान एवं उनके द्वारा महाराष्ट्र चैरिटी कमिश्नर के सामने कानूनी चुनौतियाँ उठाई जाना।  इसका मतलब यह है कि न केवल नियम बदल रहे हैं, बल्कि वास्तव में उनकी प्रासंगिकता (relevance) तुरंत महसूस की जा रही है।

संभावित परिणाम

ट्रस्ट्स को अपने ट्रस्टी-निर्वाचन और पुनर्नियुक्ति प्रक्रिया फिर से डिजाइन करनी पड़ सकती है — जैसे ट्रस्टी की अधिकतम संख्या, कार्य-काल की अवधि, ट्रस्टी रोटेशन (rotation) का नियम आदि।

ट्रस्टी-समिति में बदलाव, जैसे नए ट्रस्टी की नियुक्ति या जीवनकाल पद समाप्त करना, प्रक्रिया की शुद्धता (due process) के अधीन आएगा — ट्रस्ट्स को महाराष्ट्र पब्लिक ट्रस्ट्स एक्ट 1950 के अंतर्गत चैरिटी कमिश्नर के समक्ष रिपोर्ट करना होगा। 

इस बदलाव का असर Tata समूह के कॉर्पोरेट-गवर्नेंस मॉडल तक हो सकता है क्योंकि ट्रस्ट्स और Tata Sons के बीच संरचनात्मक संबंध गहरे हैं। किसी भी हलचल से समूह की रणनीति, हिस्सेदारी नियंत्रण या निवेश-उन्मुख बातें प्रभावित हो सकती हैं।

पारदर्शिता, जवाबदेही और सर्वोत्तम अभ्यास (best practices) की दिशा में यह एक संकेत-चिन्ह हो सकता है कि भारत में बड़े चैरिटेबल संस्थानों में शासन सुधार की दिशा बढ़ रही है।

Noel Tata is new chairman of Tata Trusts- The Week

चुनिंदा आलोचना व सवाल

यह नियम लागू होते वक्त यह प्रश्न उठता है कि क्या पुराने ट्रस्टी-नियुक्तियों को ‘पूर्व-अपवाद’ (grandfathering) मिलेगा या नहीं?

ट्रस्ट्स एवं ट्रस्टी के बीच संतुलन क्या होगा — अर्थात्, अगर ट्रस्टी की संख्या कम होगी या कार्य-काल में कटौती होगी, तो क्या घटनास्थल पर बदलाव सुचारू रूप से हो पाएगा?

ट्रस्ट्स के भीतर निर्णय-निर्धारण प्रक्रिया पर प्रभाव — क्या जीवनकाल ट्रस्टी खत्म होने से अनुभव-संग्रहीत सदस्यों की कमी होगी या बेहतर उत्तराधिकारी-योजना बनेगी?

क्या यह बदलाव सिर्फ महाराष्ट्र के ट्रस्ट्स तक सीमित रहेगा या अन्य राज्यों में भी समान प्रवृत्ति दिख सकती है?

क्या आगे देखें

इस नियम के तहत Maharashtra की चैरिटी-कमिश्नरशिप द्वारा जारी दिशा-निर्देश (guidelines) और ट्रस्ट्स द्वारा किये जाने वाले अनुपालन (compliance) का विवरण।

Tata Trusts की ओर से इस नियम पर अगला कदम — क्या ट्रस्ट्स इस फैसले को कोर्ट में चुनौती देंगे, या उनकी संरचना में बदलाव करेंगे?

अन्य बड़े सार्वजनिक ट्रस्ट संस्थानों (charitable trusts) पर इस निर्णय का प्रभाव — क्या वे भी अपनी ट्रस्टी-मॉडल में निरीक्षण करेंगे?

ट्रस्ट-गवर्नेंस के संदर्भ में भारत में आने वाले समय में क्या ठोस सुधारों की संभावना है — जैसे न्यूनतम ट्रस्टी संख्या, कार्य-काल सीमा, पुनर्नियुक्ति नीति आदि।

यह बड़े-बड़े ट्रस्ट्स और चैरिटेबल संस्थाओं के लिए एक संकेत-चिन्ह है कि समय बदल रहा है, और शासन की पुरानी परंपराएँ अब चुनौती के दौर से गुजर रही हैं। Tata Trusts पर यह सिर्फ एक नियम नहीं लग रहा — यह उन ढांचों पर असर कर रहा है जिन्हें वर्षों से स्थिर माना गया था।


Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.

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