तेलंगाना: अनियंत्रित वैकल्पिक दवाओं का सिलसिला — क्या यही गुर्दा रोग की खामोश वजह?
- byAman Prajapat
- 05 December, 2025
तेलंगाना — एक शाम, जब शहर की हलचल थम जाती है, अस्पतालों के गलियारे बज उठते हैं — युवा, इंजीनियर, टैक्सी-चालक, दुकानदार, और वो लोग जो कभी “स्वस्थ” थे। बहुतों को न तो डायबिटीज है, न हाई-ब्लड-प्रेशर, फिर भी — उनकी गुर्दा (किडनी) ने धोखा दे दिया।
🔎 क्या हुआ है?
नवीनतम अध्ययन (2024 में प्रकाशित) — Osmania General Hospital (OGH) और Apollo Hospitals के नेफ्रोलॉजी विशेषज्ञों द्वारा — में पाया गया कि तेलंगाना के शहरी क्षेत्रों, विशेषकर हैदराबाद व उसके आसपास, “मिस्ट्री किडनी डिज़ीज” यानी Chronic Kidney Disease of unknown etiology (CKDu) के मामले तेजी से बढ़ रहे हैं।
पर दिलचस्प बात यह है कि ये मामले पारंपरिक CKDu से अलग हैं — आमतौर पर खेतिहर काम, तीव्र गर्मी, पसीने, भारी श्रम से जुड़े होते थे। यहाँ, मरीजों की पृष्ठभूमि बहुत सामान्य है — ऑफिस-वर्क, दुकान-दुकान, बिजनेस, सर्विस वर्क — किसानों की नहीं।
📈 आंकड़े क्या बताते हैं?
एक बड़े सर्वे — Indian Council of Medical Research (ICMR) के तहत — से पता चलता है कि तेलंगाना उन राज्यों में है जहाँ किडनी रोगियों की दर देश के औसत से दोगुनी है: लगभग 7.4% वयस्कों की किडनी कार्यक्षमता प्रभावित है।
इसके अलावा, 75 मरीजों की OGH-Apollo स्टडी में पाया गया कि उन में से लगभग 40% ने कहा कि उन्होंने बिना पर्ची, अनियंत्रित हर्बल/वैकल्पिक दवाओं — पाउडर, “बास्मा”, टॉनिक आदि — का उपयोग किया था।
🧪 क्यों वैकल्पिक दवाओं को संदिग्ध माना जा रहा है?
वैकल्पिक, हर्बल या पारंपरिक दवाएं अपनी जड़ सम्पर्क, सादगी और प्राकृतिक प्रभाव की वजह से लोगों को भरोसा दिलाती हैं। लेकिन “प्राकृतिक” ≠ “निर्माण-मुक्त”। विशेषज्ञों का कहना है कि इन अनियंत्रित दवाओं में:
भारी धातु (heavy metals) हो सकती हैं,
अशुद्धियाँ या मिलावट हो सकती है,
निर्माण और भंडारण मानकों का अभाव हो सकता है,
सही मात्रा या पर्चा नहीं होती,
और अधिक गंभीर — कभी-कभी गुर्दा की नाजुक फ़िल्टरिंग इकाइयों (glomeruli / tubules) को स्थायी नुकसान हो सकता है।
वास्तव में, जिन मरीजों की किडनी बायोप्सी की गई, उनमें ग्लोमेरुलोस्क्लेरोसिस (किडनी फ़िल्टर की सूजन / निशान) और ट्यूबुलो-इंटरस्टिशियल नेफ्राइटिस (किडनी फ़िल्टर के आसपास की संरचना का घन-विक्षीर्ण होना) देखा गया — ऐसी क्षति जो अक्सर अपरिवर्तनीय होती है।
🌆 ये समस्या सिर्फ देहाती या गर्मी-प्रवण इलाके तक सीमित नहीं
आप सोचेंगे — क्या यह सिर्फ गांव, खेत, गर्म मौसम वाले इलाके की समस्या होगी? नहीं। असलियत उलटी है। इस अध्ययन में 21.3% मरीजों ने खेत में काम करने की बात कही — बाकी लगभग 80% शहरों, गैर-कृषि पृष्ठभूमि वाले लोग थे।
यानी यह “नया मॉडल” है — शहरों में, “स्वस्थ-दिखने वाले” युवाओं में, बिना ज्ञात जोखिम (मधुमेह, ब्लड-प्रेशर) के।
📌 सिर्फ वैकल्पिक दवाएं ही नहीं — अन्य जोखिम भी
हाँ, वैकल्पिक दवाएं बड़ी वजह हैं — लेकिन अकेली वजह नहीं। विशेषज्ञों ने कई अन्य कारकों की ओर भी इशारा किया है:
दर्दनाशक (pain-killers / NSAIDs) तथा अन्य दवाओं का बिना निगरानी सेवन।
दूषित पीने का पानी, पर्यावरणीय प्रदूषण। पुराने अध्ययनों में उन ग्रामीण इलाकों का ज़िक्र है, जहाँ जल में अत्यधिक फ्लोराइड, सल्फेट जैसी चीज़ें थीं।
खराब जीवनशैली, शराब, धूम्रपान, डाइट, आदि।
इसलिए विशेषज्ञ इसे एक “मल्टी-फैक्टरियल हेल्थ क्राइसिस” मानते हैं — यानी सिर्फ एक वजह नहीं, बल्कि कई कारण झुंड बनकर नींव हिला रहे हैं।
🔔 क्यों यह ख़बर हमारे लिए सच में डर की घंटी है
क्योंकि यह सिर्फ बूढ़ों, बीमारों की बीमारी नहीं — युवा, कामकाजी, बिलकुल सामान्य लोग।
क्योंकि गुर्दा की क्षति अक्सर धीरे-धीरे होती है — जब तक लक्षण दिखें, तब तक किडनी का एक बड़ा हिस्सा खराब हो चुकी होती है। उस स्थिति में — डायलिसिस या ट्रांसप्लांट, और जीवन-शैली लड़खड़ाने की संभावना।
क्योंकि वैकल्पिक दवाओं में भरोसा रखना — पारंपरिक सोच, जड़ विश्वास — लेकिन बिना निगरानी और regulation के, वो ही खतरनाक साबित हो सकते हैं।
क्योंकि सिर्फ दवाएं ही नहीं — पानी, पर्यावरण, भोजन, व्यवहार — सभी मिलकर गुर्दा बीमारी की चाबी हैं।
📝 ये क्या करना चाहिए: सुझाव और चेतावनी
अनियंत्रित हर्बल / पारंपरिक / वैकल्पिक दवाओं से दूरी — जब तक वो प्रमाणित, पर्चीवाले, लाइसेंसधारी चिकित्सक द्वारा न हो।
यदि किसी को लंबे समय से दर्द, गठिया, अस्वस्थता आदि के लिए टोनिक / हर्बल दवाएं दी जा रही हों — गुर्दा (किडनी) की जाँच कराएँ, खून और यूरिन टेस्ट।
सरकारी स्तर पर: वैकल्पिक दवाओं पर सख्त निगरानी — इस तरह के “बास्मा / टॉनिक / हर्बल पाउडर” बेचने वालों पर — गुणवत्ता नियंत्रण, पर्ची पाबंदी, प्रयोग-चेक।
सार्वजनिक जागरूकता अभियान — यह समझाने के लिए कि “नेचुरल / हर्बल = सुरक्षित” नहीं होता हमेशा।
स्वास्थ्य व्यायाम, पानी पर्याप्त मात्रा में पीना, सही खान-पान, शराब / स्मोकिंग से बचना — पूरी जीवनशैली सुधारे।
📰 हाल की रिपोर्ट्स — किन्हीं स्रोतों से
एक ताज़ा रिपोर्ट कहती है कि तेलंगाना में कई किडनी रोगों का सिलसिला उन लोगों में बढ़ा है, जो अनियंत्रित वैकल्पिक दवाएं ले रहे थे।
अस्पतालों में हर महीने नए मरीज — युवा, स्वस्थ दिखने वाले — बढ़ रहे हैं, जिनकी गुर्दा तबाह हो चुकी होती है।
गुर्दा रोगों की दर (CKD) तेलंगाना में राष्ट्रीय औसत से दोगुनी — यह अकेले वैकल्पिक दवाओं का नशा नहीं, बल्कि व्यापक हेल्थ इमरजेंसी की ओर इशारा है।
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