भाजपा ने राष्ट्रीय अध्यक्ष व यूपी अध्यक्ष के चयन हेतु परामर्श की प्रक्रिया पूरी की
- byAman Prajapat
- 06 October, 2025

भारतीय जनता पार्टी (BJP) ने राष्ट्रीय अध्यक्ष व उत्तर प्रदेश (यूपी) प्रदेश अध्यक्ष के चयन को लेकर किए गए आंतरिक परामर्शों की प्रक्रिया को समेटने का संकेत दिया है। The Economic Times यह कदम संगठन के अंदर नेतृत्व की दिशा तय करने की तैयारी के रूप में देखा जा रहा है। पार्टी के गुजरात व झारखंड इकाई अध्यक्षों की नियुक्ति के बाद यह दौर और भी महत्वपूर्ण बन गया है।
यह निर्णय न केवल संगठनात्मक संतुलन की दृष्टि से, बल्कि आगामी चुनावों (जैसे उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव आदि) को नजर में रखते हुए भी बेहद संवेदनशील है।
पृष्ठभूमि और राजनीतिक संवेदनाएँ
भाजपा ने पिछली कुछ नसबंदी वाली इकाइयों में नियुक्तियां कर दी हैं; गुजरात इकाई अध्यक्ष को नए रूप में चुना गया है।
लेकिन राष्ट्रीय अध्यक्ष और यूपी अध्यक्ष की कुर्सियाँ ऐसे पद हैं, जिनका चयन न सिर्फ प्रतीकात्मक महत्व रखता है, बल्कि उनमें दल का रणनीतिक रुख और सामाजिक समीकरण भी झलकते हैं।
यूपी में विधानसभा चुनाव 2027 की राजनीति पहले से ही सक्रिय हो चुकी है, इसलिए यूपी अध्यक्ष का चयन कम-से-कम क्षेत्रीय, जाति, संगठनात्मक समीकरणों को ध्यान में रखते हुए होगा।
विशेष रूप से यूपी में, भाजपा अंदर ही अंदर यह देख रही है कि क्या किसी OBC या अन्य पिछड़ा वर्ग से नेता को विकल्प बनाया जाए ताकि समाज में छपे मतदाताओं तक बेहतर पहुंच संभव हो।
केंद्रीय नेतृत्व (मोदी, शाह, नड्डा आदि) ने इस मामले में यथोचित संतुलन बनाने की कोशिशें की हैं। मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ सहित अन्य वरिष्ठ नेता दिल्ली में बैठकें कर चुके हैं, जिसमें राष्ट्रीय अध्यक्ष या प्रदेश अध्यक्ष की सहमति-राय बनाई गई है।
दावेदारों की संभावनाएँ
यद्यपि अभी तक कोई आधिकारिक नाम सामने नहीं आया है, लेकिन राजनीतिक हलकों और पार्टी सूत्रों में कुछ नाम अक्सर सुनने को मिल रहे हैं:
यूपी के वर्तमान अध्यक्ष भूपेंद्र सिंह चौधरी — वे इस पद पर हैं और उनकी जगह से हटाने या उन्हें बनाए रखने का विकल्प दोनों खुले हैं।
राज्य मंत्री धर्मपाल सिंह, B. L. वर्मा और सांसद बाबूराम निशाद — ये नाम OBC पृष्ठभूमि के हैं और पूर्व में चर्चाओं में आए हैं।
साथ ही, दलित पृष्ठभूमि से आने वाले नेताओं पर भी विचार किया जा रहा है, लेकिन उनकी स्वीकार्यता, संगठन के अंदर उनकी स्वीकार्यता और बाह्य संतुलन देखना होगा।
राष्ट्रीय अध्यक्ष की कुर्सी के लिए भी नाम मंडलियों में चर्चा हो रही है, जिसमें संतुलन, प्रतिष्ठा और संगठनिक अनुभव को प्राथमिकता मिलेगी।
चुनौतियाँ और संगठनात्मक समीकरण
यह चयन प्रक्रिया आसान नहीं है; कई तरह की चुनौतियाँ सामने हैं:
जाति और क्षेत्रीय संतुलन
यूपी जैसे राजनैतिक हलचल वाले राज्य में, ओबीसी, दलित, पिछड़ा वर्ग आदि की मांगें हमेशा मौजूद रहती हैं। यदि भाजपा इस वर्ग को नजर अंदाज करती है, तो विपक्ष इसे गंभीर हथियार बना सकता है।
केंद्र एवं प्रदेश के बीच संतुलन
एक ऐसा अध्यक्ष चुना जाना चाहिए, जिसे प्रदेश कार्यकर्ता स्वीकार करें, लेकिन साथ ही राष्ट्रीय नेतृत्व से तालमेल भी हो। यदि प्रदेश अध्यक्ष और मुख्यमंत्री, या प्रदेश अध्यक्ष और राष्ट्रीय अध्यक्ष में विवाद या द्वंद्व हो जाए, तो संगठनात्मक टूट का ख़तरा है।
भविष्य की राजनीति की तैयारी
2027 के विधानसभा चुनाव को देखते हुए, वर्तमान अध्यक्ष को न सिर्फ संगठन चलाना पड़ेगा, बल्कि चुनावी रणनीति, बूथ-प्रबुद्धता, जनसंपर्क, मुद्दे तय करने आदि में सक्रिय भूमिका निभानी होगी।
आदेश एवं संचार प्रणाली
अध्यक्ष चुनने के बाद रुख तय करना होगा कि कैसे निचली इकाइयों तक संवाद पहुंचे, कैसे कार्यक्रम योजनाएं हों, और किस तरह पार्टी की विचारधारा और योजनाओं का प्रभावी प्रचार हो।

संभावित रणनीतियाँ और संकेत
पार्टी अंदरूनी मतशक्ति (मौलिक कार्यकर्ताओं की राय) पर भी ध्यान देगी — किस नेता को grassroots स्तर से समर्थन मिले।
वरिष्ठ नेताओं की सहमति और दबाव अहम होंगे — संघ, प्रधानमंत्री कार्यालय, केंद्रीय मंत्री समूह आदि का हस्तक्षेप स्वाभाविक रहेगा।
यदि कोई संकेत चाहिए, तो यह देखा गया है कि नई नियुक्तियों में अक्सर ओबीसी और पिछड़े वर्गों के नेताओं को स्थान देने की कोशिश की जाती है।
पार्टी इस निर्णय को जल्द औपचारिक रूप देने की दिशा में है, ताकि अस्पष्टता न बनी रहे।
निष्कर्ष और आगे की राह
इस पूरे मसले में भाजपा के लिए दो बातें सबसे बड़ी चुनौतियाँ बनेंगी — विश्वसनीय नेतृत्व चयन और सामाजिक संतुलन। यदि पार्टी समय रहते घोषणा करती है और नाम को स्वीकार्य बनाती है, तो वह संगठन को मजबूती दे सकती है।
लेकिन यदि चयन ने सुझावों, कार्यकर्ताओं की अपेक्षाओं या सामाजिक समीकरणों को अनदेखा कर दिया, तो उसमें आलोचना और वैमनस्य की स्थिति उत्पन्न हो सकती है।
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