अफगान वाणिज्य मंत्री का जोर: चाबहार बंदरगाह का विस्तार और आने वाली उद्योगों के लिए 5-साल टैक्स छूट पर विचार
- byAman Prajapat
- 22 November, 2025
अफगानिस्तान ने एक महत्वाकांक्षी आर्थिक रणनीति अपनाते हुए ईरान स्थित चाबहार बंदरगाह (Chabahar Port) के व्यापक उपयोग की मांग की है। अपनी हालिया भारत यात्रा के दौरान, अफगानिस्तान के कार्यवाहक वाणिज्य मंत्री नूरुद्दीन अजीज़ी ने यह प्रस्ताव पेश किया है कि चाबहार पोर्ट को अफगान-भारतीय व्यापार में एक अहम कॉरिडोर के रूप में इस्तेमाल किया जाए।
पृष्ठभूमि और रणनीतिक महत्व
चाबहार बंदरगाह का भौगोलिक और रणनीतिक महत्व कम नहीं है। अफगानिस्तान, जो भौ-भाग से समुद्र से कटा हुआ देश है, पारंपरिक रूप से पाकिस्तान की यात्रा मार्गों पर निर्भर करता रहा है। लेकिन हाल के समय में सीमा संघर्षों और व्यापार अवरोधों के कारण, अफगानिस्तान ने ईरान और मध्य एशिया की ओर व्यापारिक रूट शिफ्ट करना शुरू कर दिया है।
चाबहार पोर्ट न केवल एक समुद्री बंदरगाह है, बल्कि एक पारगमन बाजार की भूमिका निभा सकता है — अफगानों को खुला समुद्री मार्ग देने के साथ-साथ, निर्यात एवं आयात का त्वरित और सुरक्षित चैनल तैयार कर सकता है।
कर रीढ़ की हड्डी: टैक्स छूट की पेशकश
अजीज़ी ने यह भी कहा है कि अफगान सरकार आने वाली नई उद्योगों को पांच साल की कर-मुक्ति (tax exemption) देने पर विचार कर रही है। इस कदम का मकसद विदेशी निवेशकों को आकर्षित करना और अफगानिस्तान में उत्पादन बढ़ाना है।
यह छूट केवल आयकर तक सीमित नहीं हो सकती; अफगान वाणिज्य मंत्रालय अन्य प्रोत्साहन भी प्रस्तावित कर रहा है, जिससे नए व्यवसायों के लिए शुरुआती लागत और जोखिम कम हो जाएँ।

भारत-अफगान तालमेल की नई दिशा
मंत्री अजीज़ी ने भारत की अहम भूमिका की ओर इशारा किया है। उन्होंने प्रस्ताव रखा है कि भारत अफगानिस्तान में ड्राइ पोर्ट्स (dry ports) और कस्टम लॉजिस्टिक हब विकसित करे, खासकर निम्म्रोज प्रांत में, जो ईरान सीमा के करीब है।
इसके अलावा उन्होंने भारत से आग्रह किया है कि नावा शेवा (Nhava Sheva) पोर्ट में अफगान व्यापारियों के लिए किफायती कार्गो प्रोसेसिंग की सुविधा बढ़ाई जाए, ताकि माल की आवाजाही ज़्यादा सुचारू हो सके।
दोनों देशों ने साथ मिलकर फार्मास्यूटिकल, फल प्रसंस्करण, ठंड भंडारण, और अन्य उद्योगों में निवेश के अवसरों पर चर्चा की है।
चुनौतियाँ और जटिलताएँ
हालाँकि यह दृष्टिकोण बहुत दूरदर्शी है, लेकिन इसे चुनौतियों से मुक्ति नहीं है। सबसे पहले, अमेरिका ने चाबहार बंदरगाह पर अपने प्रतिबंधों को लेकर हाल ही में कुछ छूट वापस ले रखी है, जो इस पूरे कॉरिडोर की रणनीतिकता में जोखिम पैदा करता है।
दूसरी चुनौती यह है कि इस तरह की बड़ी आर्थिक और इंफ्रा-प्रोजेक्ट्स में निवेश को धार देने के लिए भरोसेमंद लॉजिस्टिक, कस्टम क्लियरेंस और राजनयिक स्थिरता जरूरी होगी, जिससे व्यापारिक भय कम हो।
भविष्य की संभावनाएँ
अगर यह योजना सफल हुई, तो अफगानिस्तान न सिर्फ एक व्यापारिक “पास-थ्रू” देश बन सकता है बल्कि अपनी आर्थिक आत्मनिर्भरता भी बढ़ा सकता है। चाबहार पोर्ट का बेहतर इस्तेमाल दोहरी वृद्धि (डबल-बेनिफिट): अफगान निर्यात में बढ़ोत्तरी + भारत और अन्य देशों के लिए अफगानिस्तान तक निर्बाध पहुंच।
उपसंहार में, यह प्रस्ताव केवल व्यापारिक समझौता नहीं है, बल्कि क्षेत्रीय कनेक्टिविटी और आर्थिक पुनरारम्भ की एक नई कविता है — जिसमें जोखिम है, लेकिन इनाम भी बहुत बड़ा है।
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