भारत में पैलिएटिव मेडिसिन विशेषज्ञों की आवश्यकता: एक गहन विश्लेषण
- byAman Prajapat
- 12 October, 2025

भारत, जो विविधताओं और सांस्कृतिक धरोहरों से समृद्ध है, एक ऐसी भूमि है जहाँ जीवन और मृत्यु दोनों को गहरे सम्मान और समझ के साथ देखा जाता है। लेकिन जब बात आती है अंतःकालीन देखभाल और दर्द प्रबंधन की, तो यहाँ की स्वास्थ्य व्यवस्था कई चुनौतियों का सामना करती है।
पैलिएटिव मेडिसिन: एक परिचय
पैलिएटिव मेडिसिन वह शाखा है जो गंभीर बीमारियों से पीड़ित व्यक्तियों के जीवन की गुणवत्ता को बेहतर बनाने के लिए समर्पित है। यह न केवल शारीरिक दर्द, बल्कि मानसिक, सामाजिक और आध्यात्मिक पीड़ा को भी संबोधित करती है। इसका उद्देश्य मरीज और उनके परिवार को सहायक, सम्मानजनक और समग्र देखभाल प्रदान करना है।
भारत में पैलिएटिव मेडिसिन की आवश्यकता
हाल ही में एक व्यवस्थित समीक्षा और मेटा-विश्लेषण में पाया गया कि भारत में पैलिएटिव देखभाल की आवश्यकता 6.21 प्रति 1000 जनसंख्या है। यह आंकड़ा विशेष रूप से 60 वर्ष से ऊपर की आयु के व्यक्तियों में 37.86 प्रति 1000 जनसंख्या तक पहुँच जाता है। दक्षिण भारत में यह दर 10.83 प्रति 1000 है, जबकि उत्तर भारत में यह 2.24 प्रति 1000 है। शहरी क्षेत्रों में यह दर 3.34 प्रति 1000 है, जबकि ग्रामीण क्षेत्रों में यह 7.69 प्रति 1000 है। महिलाओं में यह आवश्यकता पुरुषों की तुलना में अधिक पाई गई है।
विशेषज्ञों की कमी: एक गंभीर चुनौती
भारत में पैलिएटिव मेडिसिन विशेषज्ञों की भारी कमी है। कई राज्यों में प्रशिक्षित चिकित्सकों, नर्सों और काउंसलरों की संख्या नगण्य है। इसके परिणामस्वरूप, मरीजों को समय पर और प्रभावी देखभाल नहीं मिल पाती। विशेष रूप से ग्रामीण क्षेत्रों में यह स्थिति और भी विकट है।
सरकारी प्रयास और चुनौतियाँ
भारत सरकार ने पैलिएटिव देखभाल को बढ़ावा देने के लिए कुछ योजनाएँ शुरू की हैं। उदाहरण के लिए, केरल राज्य ने "केरल केयर यूनिवर्सल पैलिएटिव सर्विस स्कीम" की शुरुआत की है, जिसमें स्वयंसेवकों को पंजीकरण करने के लिए आमंत्रित किया गया है। इस पहल के तहत, 1,34,939 बिस्तर पर पड़े मरीजों ने पंजीकरण कराया है, जो इस अभियान की बढ़ती प्रभावशीलता को दर्शाता है।

समाधान और भविष्य की दिशा
भारत में पैलिएटिव मेडिसिन विशेषज्ञों की आवश्यकता को पूरा करने के लिए कई कदम उठाए जा सकते हैं:
चिकित्सा शिक्षा में पैलिएटिव मेडिसिन का समावेश: MBBS पाठ्यक्रम में पैलिएटिव मेडिसिन को अनिवार्य विषय के रूप में शामिल किया जाना चाहिए।
विशेषज्ञों का प्रशिक्षण: चिकित्सकों, नर्सों और काउंसलरों के लिए विशेष प्रशिक्षण कार्यक्रम आयोजित किए जाने चाहिए।
संसाधनों की उपलब्धता: आवश्यक दवाओं, जैसे कि मॉर्फिन, की उपलब्धता सुनिश्चित की जानी चाहिए।
सार्वजनिक जागरूकता: पैलिएटिव मेडिसिन के महत्व के बारे में जन जागरूकता अभियान चलाए जाने चाहिए।
स्वयंसेवी संगठनों की भागीदारी: स्वयंसेवी संगठनों को इस क्षेत्र में सक्रिय रूप से शामिल किया जाना चाहिए।
निष्कर्ष
पैलिएटिव मेडिसिन केवल एक चिकित्सा सेवा नहीं, बल्कि एक मानवीय आवश्यकता है। यह मरीजों को सम्मान, आराम और गरिमा प्रदान करती है। भारत में इसके महत्व को समझते हुए, हमें इस दिशा में ठोस कदम उठाने की आवश्यकता है। केवल तभी हम एक ऐसी स्वास्थ्य व्यवस्था स्थापित कर सकते हैं जो सभी के लिए समग्र और सहायक हो।
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