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सपा सांसद Mohibullah Nadvi के “मुसलमानों को जिहाद करना पड़ेगा” बयान ने संसद में फैलाई हलचल — Bharatiya Janata Party ने मांगी माफी

सपा सांसद Mohibullah Nadvi के “मुसलमानों को जिहाद करना पड़ेगा” बयान ने संसद में फैलाई हलचल — Bharatiya Janata Party ने मांगी माफी

बुधवार, 3 दिसंबर 2025 — संसद के शीतकालीन सत्र में जब वक्फ (Waqf) संपत्तियों से संबंधित मुद्दे पर चर्चा चल रही थी, उसी दौरान Samajwadi Party (सपा) के सांसद Mohibullah Nadvi ने वो शब्द कह दिए — “शायद हमें जिहाद करना पड़ेगा।”  

नदवी ने कहा कि मुसलमानों की जिंदगी को “संविधान के अनुच्छेद 25 व 26” के संवैधानिक अधिकारों को ताक पर रख कर तंग किया जा रहा है — और वक्फ संपत्तियों की पंजीकरण प्रक्रिया में कथित असपष्टता और बाधाओं ने समुदाय में असुरक्षा का भाव जगा दिया है। 

उनका कहना था कि जिन लोगों के पूर्वजों ने स्वतंत्रता संग्राम में देश के लिए कुर्बानियाँ दीं — अब उनकी संतानों को यह कहने पर मजबूर होना पड़ रहा है कि “उम्मीद है कि फिर हमें जिहाद करना पड़ेगा”। 

नदवी ने वक्फ संपत्तियों के संदर्भ में यह खुलासा किया कि करीब 70 प्रतिशत वक्फ जायदादों — मदरसों, मस्जिदों, कब्रिस्तान आदि — का अभी तक रजिस्ट्रेशन नहीं हुआ है। पंजीकरण के लिए दिए गए छह-महीने के समय में सर्वर डाउन जैसे तकनीकी कारणों से नामांकन लगभग ठप रहा। उन्होंने इसे मुसलमानों के खिलाफ “निर्मम असंवेदनशीलता और भेदभाव” बताया। 

नदवी ने आगे कहा कि मीडिया द्वारा मुसलमानों की छवि लगातार खराब की जा रही है। मीडिया को समाजवाद के हिस्से में शामिल करते हुए उन्होंने कहा कि जब मीडिया किसी समुदाय की नैतिकता या गरिमा को गिराने की कोशिश करे — उसका बहिष्कार करना भी “जिहाद” हो सकता है। 

परliament में उस वक्त सन्नाटा टूट गया। कई सांसदों — ख़ासतौर पर sत्ताधारी दल के — ने इस बयान को "भड़काऊ, संवेदनहीन और जिम्मेदाराना नहीं" करार दिया। कहा गया कि संसद जैसी संस्था में “जिहाद” जैसे धार्मिक शब्दों का इस्तेमाल करना देश की एकता और संवैधानिक व्यवस्था के लिए खतरनाक है।  

राजनीतिक प्रतिक्रियाएँ और सियासी तूफान

Bharatiya Janata Party (BJP) ने Nadvi के बयान की तीखी आलोचना की। पार्टी के कई नेताओं ने कहा कि यह टिप्पणी “नफरत फैलाने वाली, जात-पात और धर्म के नाम पर समाज को बांटने वाली” है। उन्होंने सांसद की माफी और अयोग्य ठहराए जाने की मांग की है। 

कुछ नेताओं ने इसे संविधान की भावना के खिलाफ बताया। उनका कहना था कि भारत एक धर्मनिरपेक्ष देश है, जहाँ धार्मिक शब्दों का दुरुपयोग करके सामाजिक सौहार्द को नहीं बदला जा सकता।  

दूसरी ओर, Nadvi ने कहा कि उनका बयान “किसी हिंसात्मक जिहाद” का आह्वान नहीं था, बल्कि यह ज़्यादती, अन्याय और उत्पीड़न के खिलाफ चेतावनी थी। उन्होंने कहा कि वे सिर्फ उस परिस्थिति को बयान कर रहे थे जो मुसलमान समुदाय महसूस कर रहा है — और जब सहनशीलता की हद पार हो जाए, तो विरोध करना, खामोशी तोड़ना, “जिहाद” हो सकता है। 

इस बयान के बाद सोशल मीडिया और जनता के बीच चर्चाएँ भी तेज हो गईं — एक तरफ जहाँ कुछ लोग Nadvi के समर्थन में आ खड़े हुए, वहीं कई नागरिकों ने इसे देश के साम्प्रदायिक सौहार्द के लिए खतरनाक कहा।

पृष्ठभूमि — क्यों वक्फ संपत्ति और मुस्लिम असुरक्षा बना मुद्दा

वक्फ संपत्ति — मस्जिद, मदरसा, कब्रिस्तान, धार्मिक स्कूल आदि — मुस्लिम समुदाय की सांस्कृतिक, धार्मिक और सामाजिक पहचान से जुड़ी होती है।

हालाँकि, सरकार द्वारा लाए जा रहे वक्फ संशोधन (Waqf Amendment Bill) को सपा सहित कई अन्य पार्टियों और मुस्लिम समूहों ने आलोचनात्मक देखा है। उनका कहना है कि यह बिल वक्फ की स्वतंत्रता और प्रबंधन पर नियंत्रण बढ़ाएगा, जिससे मुस्लिम धार्मिक-सामुदायिक संस्थाओं को असुरक्षा का सामना करना पड़ेगा।

Nadvi ने सदन में यह तर्क रखा कि वर्तमान पंजीकरण प्रक्रिया महीनों से अटक चुकी है — केवल 30 प्रतिशत वक्फ संपत्तियों का पंजीकरण हुआ है, जबकि सर्वर डाउन, डेटा गायब होना, समयसीमा बंद हो जाना आदि कारणों ने सत्य-श्रृंखलाओं को बाधित कर दिया है। इस असुरक्षा और अविश्वास के माहौल ने Muslim community में निराशा और गुस्सा पैदा किया है। 

उनका यह भी कहना था कि जब संविधान में धार्मिक आज़ादी व समान अधिकार सुनिश्चित किए गए थे, लेकिन आज वहाँ तक पहुँचने में देरी और बाधाएँ आ रही हैं — तो जनता को न्याय के लिए आवाज़ उठाने का अधिकार है।

कई मत, अलग-अलग व्याख्याएँ — “जिहाद” शब्द का मतलब

यह विवाद केवल बोले गए शब्दों तक सीमित नहीं रहा, बल्कि “जिहाद” शब्द की विभिन्न व्याख्याओं ने भी बवाल बढ़ा दिया।

समर्थकों का कहना है कि Nadvi ने “जिहाद” से हिंसा या युद्ध की बात नहीं की, बल्कि “उत्पीड़न, अन्याय और असमानता के खिलाफ संघर्ष” की बात की। उनकी मंशा धार्मिक कट्टरता नहीं, बल्कि सामाजिक न्याय की ओर ध्यान आकर्षित करना था।

विरोधियों का कहना है कि संसद जैसी संवेदनशील संस्था में धार्मिक और साम्प्रदायिक भावनाओं को भड़काने वाले शब्द होना ही अनुचित है। उनका डर है कि इस तरह के बयान समाज में फूट, असहमति और कट्टरता को बढ़ावा देंगे।

कुछ विश्लेषकों ने कहा कि यह विवाद पिछले दिनों में उसी तरह के “जिहाद” बयान — जैसे Maulana Mahmood Madani के — से जुड़ा हुआ है। Madani ने कुछ दिन पहले कहा था कि “जब-जब जुल्म होगा, तब-तब जिहाद होगा”। हालांकि उन्होंने यह स्पष्ट किया कि भारत एक संवैधानिक लोकतंत्र है और वे किसी हिंसात्मक जिहाद का समर्थन नहीं करते। 

लेकिन Nadvi ने संसद में सीधे Madani के बयान को दोहराया और कहा कि वर्तमान हालात ऐसे हैं कि मुसलमानों को न्याय व सम्मान के लिए फिर संघर्ष करना पड़ सकता है। 

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सामाजिक-सांस्कृतिक और संवैधानिक निहितार्थ

इस विवाद ने देश में धर्म, संविधान, नागरिक अधिकार और राजनीतिक जवाबदेही — तीन अहम सवाल फिर से तेज़ी से उठा दिए हैं:

धार्मिक शब्दों का राजनीति में इस्तेमाल: “जिहाद” जैसे धार्मिक शब्दों का प्रयोग संवेदनशील है — यदि उनका गलत अर्थ लिया जाए, तो सामाजिक सौहार्द बिगड़ सकता है। संसद जैसी संस्था में इन शब्दों को लेकर बेहद सावधानी बरतनी चाहिए।

मुस्लिम समुदाय की असुरक्षा और वक्फ संपत्ति: कई मुस्लिम धार्मिक-सामुदायिक संस्थाएं अगर स्थिरता, कानूनी सुरक्षा और पारदर्शिता नहीं पाएँगी, तो समुदाय के भरोसे और आत्म-सम्मान पर असर पड़ेगा।

संवैधानिक अधिकारों का सम्मान: आर्टिकल 25 और 26 — जो धार्मिक स्वतंत्रता व धार्मिक संस्थाओं के प्रबंधन का अधिकार देता है — यदि समाज या प्रशासन के लिए अधूरा रह जाए, तो कांग्रेस और अन्य दलों के लिए इसे न्याय की लड़ाई कहा जा सकता है।

मीडिया और सामाजिक विचारधारा: जब मीडिया किसी समुदाय के धर्म या संस्कृति को लेकर नकारात्मक छवि पेश करे, या समुदाय को ‘दोषी’ बनाए — उसकी आलोचना करना, सवाल उठाना एक लोकतांत्रिक अधिकार है। Nadvi ने इसे “जिहाद” कहा — लेकिन क्या वे मात्र प्रतीकात्मक संघर्ष की बात कर रहे थे, या भावनात्मक/धार्मिक उकसावे की? यह अब बहस का मुद्दा है।

आज का माहौल — आगे क्या हो सकता है?

BJP ने Nadvi को अयोग्य घोषित करने और माफी मांगने की मांग की है। यदि ऐसा हुआ, तो संसद में मूड बदल सकता है।

Muslim-अभिव्यक्ति, वक्फ संपत्ति व धार्मिक स्वतंत्रता पर बहस तूल पकड़ सकती है — संसद में कम, लेकिन समाज में बड़ा असर हो सकता है।

यह बयान धार्मिक पहचान, संवैधानिक अधिकार और नागरिक असंतोष जैसे गहरे सवालों को नए सिरे से उठाता है — जो आने वाले समय के लिए अहम हो सकते हैं।


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