UP Woman Kills Her Two Sons in Gujarat, Claims It Was for ‘Ancestral Moksha'
- byAman Prajapat
- 15 November, 2025
भाई, कभी-कभी हकीकत इतने अंधे मोड़ ले लेती है कि इंसानी सोच भी दिमाग पकड़कर बैठ जाती है—और यही हुआ गुजरात के एक शांत से इलाके में, जहाँ यूपी से आई एक महिला ने ऐसा कांड कर दिया कि पूरा प्रदेश सन्न रह गया।
वो कहानियाँ जो दादी-नानी के ज़माने में सुनी जाती थीं—मोक्ष, पितृदोष, बलि, तांत्रिक—वो सब एकदम असली ज़िंदगी में उतर आया। और नतीजा? दो मासूम बच्चों की जान।
और ये सब क्यों?
पूर्वजों के मोक्ष के लिए।
यानी भाई, ये वो केस है जहाँ अंधविश्वास ने इंसानियत को इतना दबा दिया कि माँ और राक्षस के बीच की रेखा ही खत्म हो गई।
🔶 घटना का बीज: घर से गुजरात तक सफर
उत्तर प्रदेश के एक छोटे से गाँव में रहने वाली ये महिला सालों से मानसिक और पारिवारिक तनावों में पिस रही थी—लोग बताते हैं कि उसके मन में पितृदोष और पूर्वजों की आत्मा के अशांत होने का डर बैठ चुका था।
कहते हैं कि कुछ तांत्रिकों ने उसके दिमाग में ये बात ठूंस-ठूंस कर भर दी कि—
“जब तक ख़ून की बलि नहीं चढ़ेगी, तब तक पूर्वजों का मोक्ष नहीं होगा।”
यही सोच उसे यूपी से गुजरात तक खींच लाई।
🔶 कांड की रात: वो पल जिसने सबकुछ खत्म कर दिया
गुजरात के जिस घर में वह ठहरी थी, उस रात माहौल अजीब सा था। रिश्तेदारों ने बताया कि महिला कई दिनों से बेचैन थी, पूजा-पाठ, ताबीज, हवन, सब करवाती रही।
रात अंधेरी थी, हवा भारी।
माँ के दिल की जगह एक अंधी आस्था ने कब्ज़ा कर लिया।
और फिर…
धीरे-धीरे, बिना किसी को जगाए—
उसने अपने ही दो बेटों को मौत के घाट उतार दिया।
कहानी सुनकर ही रोंगटे खड़े हो जाते हैं।
वो बच्चों की चीखें, वो माँ का पागलपन…
सब कुछ कुछ ही मिनटों में खत्म हो गया।
🔶 पड़ोसियों का बयान: “हमें लगा घर में पूजा चल रही है”
गुजरात के स्थानीय लोगों ने बताया कि कई दिनों से घर में कुछ अजीब सा चल रहा था—मंत्र, धुआँ, पूजा, रोना।
किसी ने सोचा भी नहीं था कि असल में घर के अंदर मौत का खेल हो रहा है।
एक बूढ़ी पड़ोसी ने कहा:
“आज भी कानों में आवाज़ गूंज रही है। काश हम दरवाज़ा तोड़ देते।”
🔶 पुलिस इन्वेस्टिगेशन: सच्चाई जैसे-जैसे खुली, पुलिस भी हक्का-बक्का
पुलिस जब पहुँची, पूरा सीन देखकर उन्होंने भी सिर पकड़ लिया।
महिला शांत बैठी थी—जैसे उसने कोई बड़ा धर्म-कर्म कर लिया हो।
पूछताछ में उसने साफ कहा:
“मेरे पूर्वज आत्माएँ तड़प रही थीं। उन्होंने खून माँगा था।”
पुलिस को पहले लगा कि वो कहानी बना रही है,
लेकिन धीरे-धीरे सच सामने आया—अंधविश्वास, मानसिक स्थिति, तांत्रिक दबाव सब मिला-जुला मसाला।
🔶 समाज पर सवाल: आखिर 2025 में भी लोग ऐसे कैसे बहक जाते हैं?
ये केस एक कड़वी सच्चाई तमाचे की तरह हमारे सामने पटक देता है—
यार, हम डिजिटल इंडिया की बात करते हैं, स्पेस मिशन लॉन्च करते हैं, AI चला रहे हैं…
और दूसरी ओर लोग बच्चों का ख़ून बहा देते हैं मोक्ष के नाम पर।
जनरेशन चाहे कोई भी हो, गाँव-कस्बा हो या शहर—
अंधविश्वास एक छुपा हुआ जानवर है, जो मौका मिलते ही इंसान को खा जाता है।
🔶 विशेषज्ञों की राय: “यह सिर्फ अपराध नहीं, मनोवैज्ञानिक त्रासदी भी है”
मनोचिकित्सकों का कहना है—
ये महिला मानसिक दबाव, अंधविश्वास और समाजिक कंडीशनिंग की शिकार थी।
कभी-कभी इंसान इतना ज्यादा डर जाता है कि उसे सच-झूठ का फर्क भी नहीं दिखता।

🔶 परिवार की प्रतिक्रिया: टूटे हुए रिश्ते, बिखरे लोग
महिला के पति और परिवार वाले सदमे में हैं।
सब कहते हैं कि उन्होंने कभी सोचा भी नहीं था कि वह ऐसी हरकत कर सकती है।
कुछ रिश्तेदारों ने तो रोते-रोते कहा:
“हमने तांत्रिकों को पहले ही रोका था, पर उसने किसी की नहीं सुनी।”
🔶 समाज को क्या सीखने की जरूरत है?
देख, बात साफ है—
अगर हमें देश, समाज, परिवार बचाना है,
तो अंधविश्वास का इलाज सिर्फ एक है—
सही शिक्षा, जागरूकता और मानसिक स्वास्थ्य को गंभीरता से लेना।
वरना ये घटनाएँ कोई आखिरी नहीं होंगी।
🔶 निष्कर्ष: एक ऐसी कहानी जो आने वाले कई सालों तक ज़हन हिला देगी
ये केस सिर्फ न्यूज़ नहीं है—
ये आईना है, जिसमें हम अपना काला सच देख सकते हैं।
माँ जैसी पवित्र पहचान भी कैसे अंधे विश्वास में दानव बन सकती है—
इसका ये केस सबसे दर्दनाक उदाहरण है।
कभी-कभी सच्चाई इतनी कड़वी होती है कि उसे सुना नहीं जाता…
लेकिन यार, सुनना ज़रूरी है—क्योंकि ऐसी घटनाएँ समाज को जगाती हैं, हिलाती हैं, और सीख देती हैं।
Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.
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