ग़ाज़ा के बच्चों की किताबों‑रहित कक्षाएँ: टेंट के बीच लौटती पढ़ाई
- byAman Prajapat
- 27 November, 2025
आँख मूंदो तो सुनसान दीवारों, टूटी क्लासरूम, खाली किताब‑शेल्फ और एक सुनसान उम्मीद झांकती है। लेकिन ग़ाज़ा के बच्चे — अभी भी — उस उम्मीद को थामे हुए हैं। दो साल के युद्ध के बाद, जब उनके स्कूलों पर बम बरसे और दीवारें गिरीं, तो सिर्फ मकान नहीं गिरे — बच्चों के सपने, उनकी शिक्षा, उनका भविष्य छीन लिया गया।
फिर भी, जैसे राख से अग्नि फनक उठती है, उसी तरह — आशा की लौ जली है। तंबुओं और अस्थायी शरण स्थलों में—जहाँ पहले बैग, किताब और यूनिफार्म हुआ करती थी—उन्होंने कक्षाएँ शुरू कर दीं। यह शुरुआत है, उम्मीद की, संघर्ष की, और यकीन की कि बचपन वापस मिलेगा।
युद्ध के बाद ग़ाज़ा: शिक्षा की तबाही
रिपोर्टों के अनुसार, ग़ाज़ा में लगभग 97% स्कूल भवन या तो पूरी तरह नष्ट हो चुके हैं या इतने नुकसानग्रस्त हो गए हैं कि उन्हें बंद करना पड़ा।
जो पढ़ाई बंद हुई, वो दो साल से ज्यादा चली। इस दौरान सैकड़ों हजार बच्चे—उनके सपने, उनकी कक्षाएँ, उनकी किताबें सब खाक हुए।
मगर — स्कूलों का न होना सिर्फ एक इमारत का न होना नहीं; यह एक पीढ़ी की नॉर्मल क्लासरूम‑बचपन‑रूटीन को कुचलने जैसा था। घरों से विस्थापन, भूख, पानी की किल्लत, और रोजमर्रा की बुनियादी ज़रूरतें — इस सबके बीच पढ़ाई का कोई सहारा नहीं।
“टेंट स्कूल्स” — अस्थायी लेकिन ज़रूरी
जैसे‑जैसे युद्ध रुकने की कगार पर पहुंचा, अन्तरराष्ट्रीय एजेंसियाँ और राहत संस्थान — खासकर UNRWA (United Nations Relief and Works Agency for Palestine Refugees) — प्रयासों में जुटे कि बच्चों को पढ़ाई का मौका मिले।
उदाहरण के लिए, 11‑साल की बच्ची Layan Haji — युद्ध के बाद बिना बैग, बिना किताब, बिना यूनिफार्म — फिर भी रोज अपने गाँव की खंडहर सड़कों पर चलकर अस्थायी क्लासरूम पहुँचती है।
उसके स्कूल का नाम है Al‑Louloua al‑Qatami School — जहाँ करीब 900 बच्चे पढ़ने लगे हैं।
लेकिन — किताबें, नोटबुक, बैग नहीं हैं; लाइब्रेरी बम बमबारी में तबाह हो चुकी। बच्चे झुर्रियों वाले कपड़ों में, पैचों से सने हुए स्कूल यूनिफार्म न पहन कर, सिर्फ उम्मीद के साथ पढ़ने जाते हैं।
बच्चों की ज़िंदगी: लड़ाई सिर्फ पढ़ाई की नहीं है
पढ़ाई शुरू हुई, लेकिन उनकी परेशानियाँ कम नहीं हुईं।
16‑साल के युवक Said Sheldan बताते हैं — “मैं स्कूल वापस जा रहा हूँ, लेकिन मेरे पास किताब‑नोटबुक, पेन‑पेंसिल, बैग नहीं है। यहाँ न कुर्सियाँ हैं, न बिजली, न पानी, यहाँ तक कि सड़कें भी नहीं।”
रोज़मर्रा की ज़रूरतें इतनी जटिल हैं कि पढ़ने से पहले पानी लेने जाना, रोटी के लिए इंतजार करना, परिवार के लिए काम करना — ये सब उनकी दिनचर्या बन चुकी है।
कुछ बच्चों के लिए शिक्षा अब “भारी मेहनत” बन चुकी है — सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि जीवन यापन की एक कड़ी।

भावनात्मक और मानसिक स्वास्थ्य: वो अनदेखी कहानी
जंग, विस्थापन, भूख, असुरक्षा — इन सबका प्रभाव सिर्फ शारीरिक नहीं; बच्चों के मन पर गहरा असर हुआ है।
कई युवा, कक्षा में आते हैं, लेकिन किताबों की कमी, अनिश्चितता, रोजमर्रा की चुनौतियों और परिवार की ज़रूरतों के बीच, उनकी एकाग्रता और शिक्षा में रुचि कम हो रही है।
जानकार कहते हैं कि अगर बचपन से शिक्षा और सामान्य जीवन वापस न मिला, तो एक पूरी पीढ़ी का मानसिक व भावनात्मक विकास प्रभावित होगा।
इसलिए कुछ अस्थायी स्कूल — सिर्फ पढ़ाई नहीं, बल्कि खेल‑कूद, संगीत, रचनात्मक गतिविधियाँ शुरू कर रहे हैं, ताकि बच्चों को एक “सामान्य बचपन” की झलक मिले — एक लौ प्रयास के रूप में।
मदद, प्रयास और उम्मीद — लेकिन राह अभी लंबी
कुछ राहत संस्था (जैसे कि Education Above All Foundation) और अन्तरराष्ट्रीय समुदाय प्रयास कर रहे हैं — किताबें बाँटना, इंटरनेट और बिजली उपलब्ध कराना, और मानसिक सहारा देना।
लेकिन — असली चुनौतियाँ अभी लंबी हैं:
किताब‑नोटबुक की भारी कमी — जब तक ये सप्लाई नहीं होगी, अस्थायी स्कूल केवल अस्त‑व्यस्त पढ़ाई का रूप ही ले पाएँगे।
बुनियादी सुविधाओं — पानी, बिजली, चप्पड़‑चोपड़, सुरक्षित आवास — का पुनर्निर्माण करना होगा।
बच्चों और परिवारों का भरोसा, उनकी स्थिरता — इस पर काम करना पड़ेगा।
मार डाली गई पढ़ाई और दो साल का अंतर — उसे पूरा करना होगा, ताकि ये बच्चे अपने भविष्य की दौड़ में पीछे न रहें।
निष्कर्ष — एक खोई हुई पीढ़ी, एक लड़ाई, एक उम्मीद
युद्ध ने ग़ाज़ा के स्कूलों को नहीं सिर्फ मलबा बनाया — उस मलबे में कई बच्चों का बचपन, उनका भविष्य, उनकी पढ़ाई — सब दबा दिए। लेकिन इसी मलबे से, अस्थायी तंबुओं और टेंटों के बीच — एक नई लहर उठ रही है।
उन छोटे‑छोटे कदमों में — तंबू, कक्षा, अनपढ़ बैग, टूटी दीवारों के बीच पढ़ते बच्चे — झलक रही है उम्मीद की छवि। यह उम्मीद है कि चाहे कितनी भी मुश्किलें हों, शिक्षा फिर लौट सकती है।
लेकिन हमें, दुनिया को — इन बच्चों के लिए, उनको किताबें, सपोर्ट, और एक सुरक्षित भविष्य देने की ज़रूरत है। वरना, ये सिर्फ अस्थायी कक्षाएँ — अस्थायी बचपन — रह जाएँगी।
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"हाईकोर्ट ने प्राइव...
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