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भारत का विनिर्माण क्षेत्र अक्तूबर में गति पकड़ रहा है: घरेलू मांग में मजबूती, पीएमआई दिखा 59.2 का उछाल

भारत का विनिर्माण क्षेत्र अक्तूबर में गति पकड़ रहा है: घरेलू मांग में मजबूती, पीएमआई दिखा 59.2 का उछाल

भारत की अर्थव्यवस्था में एक नई ऊर्जा का संचार हो रहा है — और यह ऊर्जा सबसे साफ़ दिखाई दे रही है विनिर्माण क्षेत्र (Manufacturing Sector) में।
HSBC द्वारा तैयार की गई नवीनतम Purchasing Managers’ Index (PMI) रिपोर्ट के अनुसार, अक्तूबर 2025 में भारत का मैन्युफैक्चरिंग PMI 59.2 पर पहुँच गया है। यह सितंबर के 57.7 की तुलना में उल्लेखनीय वृद्धि है, जो बताती है कि उद्योग जगत में उत्पादन और मांग दोनों में उत्साह बढ़ा है।

🇮🇳 घरेलू मांग बनी प्रमुख ताकत

रिपोर्ट साफ़ तौर पर दिखाती है कि इस वृद्धि की असली ताकत घरेलू मांग (Domestic Demand) रही है।
घरेलू उपभोक्ताओं और खुदरा बाजारों से बढ़ते ऑर्डर ने कंपनियों को उत्पादन बढ़ाने के लिए प्रेरित किया।
त्योहारों के मौसम ने भी इस उछाल में अहम भूमिका निभाई — ऑटोमोबाइल, कंज्यूमर इलेक्ट्रॉनिक्स, और टेक्सटाइल सेक्टर में बिक्री और ऑर्डर दोनों में सुधार देखा गया।

कंपनियों का कहना है कि “नये ऑर्डर और उत्पादन में निरंतर वृद्धि ने बाजार का आत्मविश्वास बढ़ाया है।”
हालांकि वैश्विक ऑर्डर्स में थोड़ी सुस्ती रही, लेकिन घरेलू मांग ने उस कमी की भरपाई कर दी।

⚙️ रोज़गार और उत्पादन में तेजी

PMI डेटा बताता है कि उत्पादन बढ़ने के साथ-साथ रोज़गार सृजन (Job Creation) में भी सुधार हुआ है।
लगातार 20वें महीने नौकरियों में बढ़ोतरी दर्ज की गई है — कंपनियों ने उत्पादन स्तर संभालने के लिए नए कर्मचारियों की भर्ती की है।
यह संकेत देता है कि उद्योग धीरे-धीरे स्थिरता की ओर लौट रहा है, और लंबी अवधि में रोजगार अवसर बढ़ सकते हैं।

📉 लागत और मूल्य स्थिति

इनपुट लागत — जैसे कच्चा माल, ऊर्जा और परिवहन — में वृद्धि का दबाव अक्तूबर में कुछ कम हुआ।
पिछले 8 महीनों में यह सबसे धीमी गति से बढ़ी है, जिससे कंपनियों को थोड़ी राहत मिली।
हालाँकि, उत्पादों की बिक्री कीमतें (Output Prices) अभी भी ऊँचे स्तर पर बनी हुई हैं क्योंकि कंपनियाँ लागत में बढ़ोतरी को उपभोक्ताओं तक पहुँचा रही हैं।

इसका अर्थ है कि मुद्रास्फीति (Inflation) का दबाव पूरी तरह खत्म नहीं हुआ है, लेकिन यह अब धीरे-धीरे नियंत्रित दिशा में जा रहा है।

🌍 निर्यात में सुस्ती, पर भरोसा बरकरार

जहाँ घरेलू बाजार में उत्साह दिखा, वहीं निर्यात ऑर्डर्स (Export Orders) में वृद्धि धीमी रही।
यूरोप और एशिया-प्रशांत क्षेत्रों में मंदी जैसी परिस्थितियों और वैश्विक अनिश्चितताओं का असर भारतीय निर्माताओं पर भी पड़ा है।
इसके बावजूद, भारतीय कंपनियाँ आने वाले महीनों में निर्यात के सुधार को लेकर आशावादी हैं।

व्यापार भावना (Business Sentiment) थोड़ी कम हुई है — लेकिन अभी भी “मजबूत” श्रेणी में बनी हुई है।
इसका मतलब यह है कि कंपनियाँ अपने भविष्य को लेकर सकारात्मक हैं, बस वे वैश्विक बाज़ार की गति पर नज़र रखे हुए हैं।

💡 सरकारी नीतियाँ और उद्योग सुधार

सरकार द्वारा हाल ही में की गई कुछ नीतिगत घोषणाएँ भी इस वृद्धि में सहायक रही हैं।

GST रिफॉर्म्स और टैक्स प्रोत्साहन ने छोटे-मध्यम उद्योगों के लिए नकदी प्रवाह सुधारा।

“मेक इन इंडिया” और “प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (PLI)” जैसी योजनाओं ने विदेशी निवेशकों का भरोसा बढ़ाया।

इंफ्रास्ट्रक्चर और लॉजिस्टिक्स सुधारों से उत्पादन और वितरण दोनों आसान हुए हैं।

इन कदमों का परिणाम अब धीरे-धीरे जमीन पर दिखने लगा है।

India's manufacturing PMI eased to three-month low in May | Mint

📈 HSBC और S&P Global का विश्लेषण

HSBC और S&P Global के अर्थशास्त्रियों ने इस रिपोर्ट में बताया कि:

“भारत का विनिर्माण क्षेत्र मजबूत गति से विस्तार कर रहा है। घरेलू ऑर्डर्स में तेजी, कीमतों में स्थिरता, और नीतिगत स्पष्टता ने मिलकर यह गति दी है। आने वाले महीनों में यह प्रवृत्ति जारी रहने की उम्मीद है।”

🔮 भविष्य का परिदृश्य

आगे के महीनों में भारत के विनिर्माण क्षेत्र के लिए कुछ अहम बातें तय करेंगी कि यह वृद्धि कितनी स्थायी है:

त्योहारों के बाद की मांग — क्या घरेलू खरीदारी का उत्साह बना रहेगा?

वैश्विक बाजार की बहाली — यूरोप और अमेरिका में मंदी के संकेत कम होंगे या नहीं।

कच्चे माल की कीमतें — अगर स्थिर रहीं, तो उत्पादन लागत पर दबाव नहीं बढ़ेगा।

टेक्नोलॉजी और ऑटोमेशन निवेश — इससे उत्पादन क्षमता और बढ़ सकती है।

अगर ये सभी फैक्टर संतुलित रहे, तो भारत का मैन्युफैक्चरिंग सेक्टर आने वाले वित्तीय वर्ष में 60 PMI के आसपास या उससे ऊपर भी पहुँच सकता है — जो किसी भी उभरती अर्थव्यवस्था के लिए अत्यंत मजबूत संकेत है।

🪔 निष्कर्ष

भारत का विनिर्माण क्षेत्र अब केवल “पुनरुद्धार” (Recovery) की अवस्था में नहीं है — यह “विकास” (Growth) की राह पर लौट चुका है।
घरेलू मांग की शक्ति, सरकारी सुधारों का असर और उद्योग जगत का आत्मविश्वास — तीनों मिलकर देश की आर्थिक रीढ़ को मज़बूत बना रहे हैं।
अगर निर्यात की रफ्तार भी साथ आ जाए, तो भारत निकट भविष्य में न केवल एशिया में बल्कि वैश्विक उत्पादन केंद्रों में से एक बन सकता है।

भारत की नई औद्योगिक कहानी अब शुरू हो चुकी है —
और इस बार, यह कहानी “Made in India” की मुहर के साथ दुनिया भर में सुनाई देगी।


Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.

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