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विराट-रोहित के युग में पुजारा की पहचान कैसे बनी — वो ‘कैरेक्टर आर्टिस्ट’ जिसके बिना टेस्ट क्रिकेट की कहानी अधूरी

विराट-रोहित के युग में पुजारा की पहचान कैसे बनी — वो ‘कैरेक्टर आर्टिस्ट’ जिसके बिना टेस्ट क्रिकेट की कहानी अधूरी

नई दिल्ली. चेतेश्वर पुजारा ने क्रिकेट के सभी फॉर्मेट से संन्यास ले लिया है। उनका करियर हमें यह सिखाता है कि क्रिकेट सिर्फ चौके-छक्कों का खेल नहीं, बल्कि धैर्य, संघर्ष और भरोसे की भी कहानी है।

🏏 क्यों अलग हैं पुजारा?

पुजारा को उनके बनाए रनों से नहीं, बल्कि क्रीज़ पर टिके रहने की कला से समझा जाना चाहिए।

जब टीम दबाव में होती थी, पुजारा ढाल बनकर खड़े रहते थे।

उन्होंने बार-बार दिखाया कि टेस्ट क्रिकेट में असली हीरो वही है, जो शोर नहीं मचाता, लेकिन चुपचाप टीम को संभालता है।

उनके करियर की कहानी हमें यह बताती है कि क्रिकेट सिर्फ ग्लैमर का खेल नहीं, बल्कि चरित्र (Character) का भी खेल है।

🎬 ‘कैरेक्टर आर्टिस्ट’ की भूमिका

क्रिकेट की भाषा में अगर विराट कोहली और रोहित शर्मा मुख्य नायक (Hero) हैं, तो पुजारा उस कैरेक्टर आर्टिस्ट की तरह रहे जो बिना सुर्खियों में आए कहानी को पूरा करते हैं।

कई बार उनकी धीमी पारियों की आलोचना हुई, लेकिन वही पारी टीम इंडिया के लिए दीवार की तरह साबित हुई।

ऑस्ट्रेलिया और इंग्लैंड जैसी मुश्किल परिस्थितियों में उनके ‘रुकने’ ने टीम को जीत तक पहुंचाया।

📖 शुरुआत से ही अलग अंदाज

अपने पहले ही टेस्ट मैच में पुजारा ने जिस ठहराव के साथ बल्लेबाजी की थी, वह अनिल कुंबले और अयाज मेमन जैसे दिग्गजों को भी प्रभावित कर गया।

बैंगलुरु में 70 रन की वह पारी सिर्फ एक ट्रेलर थी।

असली पिक्चर अगले 10–12 सालों में सामने आई, जब उन्होंने भारत की टेस्ट बैटिंग को मजबूती दी।

🎓 पुराने स्कूल के छात्र, नए दौर के सबक

पुजारा की बल्लेबाजी हमें पुराने दौर के बल्लेबाजों की याद दिलाती है—जहाँ धैर्य और तकनीक सब कुछ था।
लेकिन साथ ही उन्होंने नए जमाने के क्रिकेट को अपनाने की कोशिश भी की। यही संतुलन उन्हें खास बनाता है।

✍️ निष्कर्ष

चेतेश्वर पुजारा का संन्यास केवल एक खिलाड़ी का विदाई लेना नहीं है, बल्कि यह भारतीय टेस्ट क्रिकेट के एक सुनहरे अध्याय का अंत है।
उनकी पहचान उस ‘अनसुने हीरो’ की है जो टीम को तब संभालता था जब बाकी सब लड़खड़ा रहे थे।


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