एशिया के सबसे खुश शहरों की रैंकिंग 2025: लोकल निवासियों ने चुना — मुंबई शीर्ष, बीजिंग और शंघाई जोरदार पीछे
- byAman Prajapat
- 08 November, 2025
🌏 एशिया के सबसे खुश शहर 2025: मुंबई, बीजिंग और शंघाई बने खुशी के केंद्र
मुंबई ने दिखाया जज़्बा, बीजिंग और शंघाई ने रचा संतुलन का नया इतिहास
एशिया — वो महाद्वीप जहाँ सुबह सूरज सबसे पहले झाँकता है और जहाँ हर सड़क, हर बाज़ार, हर चेहरा एक कहानी कहता है।
2025 में इसी एशिया ने दुनिया को एक नई कहानी सुनाई — “खुशियों की।”
Time Out के वार्षिक सर्वे के अनुसार, मुंबई एशिया का सबसे खुश शहर बन गया है, जबकि बीजिंग दूसरे और शंघाई तीसरे स्थान पर रहे।
इस सर्वे में एशिया के 18,000 से अधिक नागरिकों से सवाल पूछा गया — “क्या आपका शहर आपको सच में खुश रखता है?”
और जवाब आया — “हाँ!”
पर वो ‘हाँ’ किस वजह से है, यही है असली कहानी।
🏙️ मुंबई — जहाँ भीड़ नहीं, भावनाएँ टकराती हैं
मुंबई — वो शहर जो कभी नहीं रुकता।
जहाँ लोकल ट्रेन की भीड़ में भी दोस्ती होती है, और बारिश में भी खुशी की बूंदें बरसती हैं।
2025 के सर्वे में मुंबई के 94% निवासियों ने कहा —
“हम अपने शहर में खुश हैं।”
89% लोगों ने माना कि उन्होंने दुनिया में कहीं और उतनी खुशी महसूस नहीं की।
और यह सुनकर कोई हैरानी नहीं, क्योंकि मुंबई का दिल बड़ा है।
यहाँ हर कोना एक मौका देता है —
मरीन ड्राइव की लहरों में शांति का सुकून,
स्ट्रीट फूड में जिंदगी का असली स्वाद,
फिल्म सिटी की चमक में सपनों की उड़ान,
और ऑफिस के ट्रैफिक में भी हँसी का बहाना।
मुंबई की असली ताकत उसकी “रूटीनी खुशियाँ” हैं — वो छोटी-छोटी चीज़ें जो हर दिन को ज़िंदा बनाती हैं।
यही कारण है कि चुनौतियों के बावजूद मुंबईवासियों ने खुशी का अर्थ खुद गढ़ लिया है —
“भले वक़्त कठिन हो, पर ज़िंदगी खूबसूरत है।”
🏯 बीजिंग — परंपरा और प्रगति का संतुलन
दूसरे स्थान पर है बीजिंग, चीन की राजधानी और एशिया के सबसे पुराने आधुनिक शहरों में से एक।
यह शहर सिर्फ राजमहलों या चौक तक सीमित नहीं — यह एक एहसास है, जहाँ इतिहास और आज साथ चलते हैं।
यहाँ के लोगों ने बताया —
“बीजिंग में हम सिर्फ काम नहीं करते, हम जीते भी हैं।”
इस शहर की खुशी की जड़ें हैं इसकी सांस्कृतिक स्थिरता और आधुनिक नागरिक जीवन में।
हर गली में कोई न कोई त्योहार चलता रहता है,
लोग पार्कों में सुबह ताई-ची करते हैं,
और शाम को पुरानी गलियों में चाय की चुस्की के साथ बातचीत करते हैं।
बीजिंग की ताकत यह है कि उसने आर्थिक विकास और भावनात्मक जुड़ाव दोनों को संतुलित किया है।
वह दिखाता है कि विकास का मतलब सिर्फ ऊँची इमारतें नहीं, बल्कि ऐसे शहर बनाना भी है जहाँ लोग मुस्कुरा सकें।
🏙️ शंघाई — सपनों का चमकता बंदरगाह
शंघाई तीसरे स्थान पर रहा — और यह शहर उस ऊर्जा से भरा है जो कभी थमती नहीं।
यहाँ का माहौल कहता है —
“तेज़ी भी है, और तरलता भी।”
92% स्थानीय लोगों ने कहा कि उन्हें अपने शहर पर गर्व है, और वह उन्हें “खुश” महसूस कराता है।
शंघाई का जादू इसकी बहुसंस्कृतिवादिता में है —
यूरोपियन आर्किटेक्चर और एशियाई भावना का संगम,
हर गली में नई कला, नया कैफ़े, नई सोच।
यह शहर आर्थिक रूप से सशक्त है, लेकिन साथ ही भावनात्मक रूप से जुड़ा हुआ भी है।
यहाँ जीवनशैली “ग्लोबल” है, पर आत्मा “स्थानीय।”
लोग कहते हैं, “हम भागते नहीं, बहते हैं।”

🌿 बाकी खुश शहर — एक झलक
रैंकिंग में आगे और भी शहर हैं जिन्होंने अपने लोगों को मुस्कराने का कारण दिया —
4️⃣ चियांग माई (थाईलैंड):
पहाड़ों और मंदिरों की शांति में बसता सुख।
5️⃣ हनोई (वियतनाम):
जहाँ इतिहास आज भी ज़िंदा है, और हर नुक्कड़ पर संगीत गूंजता है।
6️⃣ जकार्ता (इंडोनेशिया):
भीड़ के बीच भी अपनापन; लोगों की मिलनसारिता ही यहाँ की खुशी है।
7️⃣ हांगकांग:
आर्थिक दबावों के बावजूद कला, संस्कृति और कैफ़े संस्कृति से मिला नया संतुलन।
8️⃣ बैंगकॉक (थाईलैंड):
रात की रौनक, स्ट्रीट फूड और पर्यटन की गर्मजोशी — जीवन का उत्सव।
9️⃣ सिंगापुर:
साफ़-सुथरी सड़कों से लेकर योजनाबद्ध जीवन तक — अनुशासन में भी आनंद।
🔟 सियोल (दक्षिण कोरिया):
के-पॉप, तकनीक और परिवार के प्रति प्रेम — सब एक साथ।
💬 क्यों मायने रखती है यह रैंकिंग?
यह सूची सिर्फ एक यात्रा गाइड नहीं — यह हमारी सामाजिक सेहत का आईना है।
एक ऐसा युग जहाँ तकनीक ने सब कुछ बदल दिया, वहाँ भी इंसान “खुश” रहना चाहता है।
यह सर्वे यह बताता है कि खुशी GDP या इमारतों की ऊँचाई में नहीं, बल्कि
सामुदायिक रिश्तों में,
अपनत्व की भावना में,
और अपनेपन की खुशबू में है।
मुंबई ने ये सब बिना दिखावे के हासिल किया है —
वो दिखाती है कि खुश रहना एक “कला” है, जिसे हर कोई सीख सकता है।
🧭 खुशी की परिभाषा बदल रही है
आज के युवा — चाहे वो भारत में हों या चीन में — अब सिर्फ “सफल” नहीं होना चाहते,
वो “संतुष्ट” भी रहना चाहते हैं।
यह बदलाव एशिया के शहरों में साफ़ दिख रहा है।
लोग अब ट्रैफिक, महंगाई या नौकरी की चिंता के बीच भी वक्त निकाल रहे हैं —
अपने दोस्तों से मिलने का,
एक कप कॉफ़ी पीने का,
या बस खिड़की से शहर देखने का।
खुशी का यही नया सूत्र है — सरल पल, सच्ची मुस्कान।
🌈 मुंबई से सीखने वाली बात
मुंबई की रैंकिंग इस बात की मिसाल है कि किसी शहर को “खुश” बनाने के लिए अरबों की योजना नहीं,
बल्कि लोगों की सकारात्मकता और जीने की ललक चाहिए।
यह शहर हर दिन अपने लोगों को थकाता भी है, लेकिन उतना ही सिखाता भी है —
“कभी हार मत मानो।”
और शायद यही जज़्बा उसे पूरे एशिया में खुशी का प्रतीक बना गया।
🏁 निष्कर्ष — शहर नहीं, लोग खुश होते हैं
यह रिपोर्ट हमें याद दिलाती है —
खुशी किसी गली, इमारत या समंदर से नहीं आती,
वह आती है उस “दिल” से जो उस शहर को जिंदा रखता है।
मुंबई, बीजिंग, और शंघाई ने सिर्फ अपनी सुंदरता से नहीं,
बल्कि अपने रिश्तों, संस्कृतियों और उम्मीदों से यह साबित किया है
कि एशिया का भविष्य सिर्फ “विकास” नहीं, बल्कि “खुशहाली” है।
Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.
"Bengaluru's Summer...
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