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राजस्थान ट्रैवल: अमृता देवी बिश्नोई का बलिदान और खेजड़ी के पेड़ों से जुड़ा अनोखा इको-टूरिज्म सफर

राजस्थान ट्रैवल: अमृता देवी बिश्नोई का बलिदान और खेजड़ी के पेड़ों से जुड़ा अनोखा इको-टूरिज्म सफर

✈️ Travel News: खेजड़ी के पेड़ों और अमृता देवी बिश्नोई के बलिदान से जुड़ा राजस्थान का इको-टूरिज्म सफर

राजस्थान को लोग रेगिस्तान, किले और हवेलियों के लिए जानते हैं, लेकिन यहां की बिश्नोई संस्कृति और अमृता देवी बिश्नोई का बलिदान भी यात्रियों के लिए उतना ही अनोखा अनुभव है।

1730 में, जब जोधपुर के महाराजा ने अपने महल के लिए खेजड़ी पेड़ों को कटवाने का आदेश दिया, तब बिश्नोई समाज की महिलाओं और पुरुषों ने पेड़ों को गले लगाकर अपनी जान दे दी। इस आंदोलन का नेतृत्व अमृता देवी बिश्नोई ने किया था। उन्होंने कहा था –
“सर साटे रुंख रहे तो भी सस्तो जाण।”
(पेड़ों को बचाने के लिए सिर कट भी जाए तो भी यह सौदा सस्ता है।)

यही घटना आगे चलकर आधुनिक चिपको आंदोलन की प्रेरणा बनी।

🌿 क्यों जाएं बिश्नोई क्षेत्र?

जोधपुर और आसपास के बिश्नोई गाँव में आज भी पर्यावरण संरक्षण को धर्म माना जाता है।

पर्यटक यहां जाकर बिश्नोई लाइफस्टाइल को करीब से देख सकते हैं।

खेजड़ी पेड़ों, वन्यजीवों और झीलों के संरक्षण की मिसाल यहां देखने को मिलती है।

अमृता देवी का बलिदान स्थल आज एक प्रेरणादायक इको-टूरिज्म डेस्टिनेशन है।

🛣️ कैसे पहुंचे?

जोधपुर सबसे नजदीकी शहर है, जहां एयरपोर्ट और रेलवे स्टेशन दोनों मौजूद हैं।

वहां से टैक्सी या लोकल गाइड की मदद से बिश्नोई गाँव और अमृता देवी स्मारक तक पहुंचा जा सकता है।

🌏 यात्रियों के लिए अनुभव

बिश्नोई समाज की मेहमाननवाजी का आनंद लें।

ग्रामीण पर्यटन (Rural Tourism) का अनुभव करें।

पर्यावरण और संस्कृति से जुड़े अनोखे किस्सों को सुनें।


Note: Content and images are for informational use only. For any concerns, contact us at info@rajasthaninews.com.

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